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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * ++++++++++++=+++++++++++++++++++++&++++++++ ++ộ%++++++++++oote हँसता है । (३) कराति-कणाई-बह करता है। (४) चुम्वति = = वह चुम्बन करता है । (५) भणति भणइ % वह पढ़ता है । वह कहता है : उपशाम्यति समइ % वह शांत होता है. वह क्रोध रहित होता है। (७) प्राप्नोति = पाव = 4 पाता है । (८) सिञ्चति =सिंच पर सींचता है। . (6) रुणदि = रुन्धड़ = वह रोकता है। (१०) मुगाति - मुसइ - वह चोरी करता है। (११) रातहर वह हरण करता है । (१०) करोति- करबह करता है। इन व्यञ्जनान्त धातुओं के अन्त में 'प्रकार' स्वर का आगम हुआ है । यो अन्यत्र व्यञ्जनान्त धातुओं के सम्बन्ध में भी 'अकार' आगम की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये। 'शप' आदि अन्य विकरण प्रत्ययों का पागम प्रायः प्राकृत भाषा की धातुओं में नहीं हुआ करता है ।। ४-२३६ ।।
स्वरादनतो वा ॥४-२४० ॥
अकारान्तवर्जितात् स्वरान्ताद्धातोरन्ते अकासगमो वा भवति ॥ पाइ पाइ । धाइ थाइ । जाइ जाइ । भाइ भाइ । जम्भाइ जम्भाअई। उधाइ उचाइ । मिलाई मिलाअइ । विकइ विक्के अइ । होउण होऊण । अनत इति किम् । चिइन्छ । दुगुच्छइ ।।
___ अर्थः-प्राकृत-भाषा में अकारान्त धातुओं को छोड़ कर किमी भी अन्य स्वरान्त-धातु के अन्त में काल-बोधक प्रत्यय जोड़ने के पूर्व विकल्प से विकरण प्रत्यय के म.प में 'अकार' स्वर की भागम-रूप से प्राग्नि हुआ करती है। यों अकारान्त धातु के सिवाय अन्य स्वरान्त धातु और कालबोधक प्रत्यय के बीच में 'श्रकार स्वर को ग्रामि विकल्प प से हो जाया करता है । जैसे-पाति % पाइ अथवा पाअइ%D वह रक्षण करता है। धावति - धाइ 'अयवा धाअड्= वह दौड़ता है। याति - जाइ अथवा जाअइ-वह जाता है । ध्यायति = झाइ अथवा झाअई-वह ध्यान करता है। जृम्भाति = जम्भाइ अथवा जम्माअइवह जम्हाई (जभाई। लेना है। उदवाति-जवाइ अथवा उषाअ-यह सूखता है, वह शुष्क होता है। ग्लायतिमिलाइ अयना मिळाअइबह म्लान होता है, यह निस्तेज होता है । विक्रीणाति - विक्के अथवा विकेगा: वह बेचता है । भूत्वा-हाऊण अथवा होअऊण-हो कर के ! यों उपरोक्त उदाहरणों में अकारान्त धातु के सिवाय अन्य स्वरान्त धातुओं का प्रयोग करके 'धातु नया प्रत्यय के बीच में 'अकार' स्वर का आगा विला से प्रस्तुन किया गया है कि इस प्रागम रूप से प्राप्त 'कार' स्वर के प्राजाने से भी अर्थ में कोई अन्तर नहीं श्राता है । इस प्रकार की स्थिति को अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये।
प्रम:-प्रकारान्त थातुओं में' उक्त रीति से प्राप्तव्य भागम-रूप 'कार' स्वर की प्राप्ति का निषेध क्यों किया गया है?