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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * .rrentraterroreoneerodernoon
एषामन्त्यस्य छो भवति । गच्छइ । इच्छइ । जच्छर । अच्छइ ॥
अर्थः-प्राकृत भाषा में संस्कृत-धातु 'गम् . इषु , यम और श्रास' में स्थित अन्त्य व्यज । के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होती है । यो 'गम् का गच्छ. इष का इच्छु, यम् का जच्छ और 'श्राम का अच्छ' हो जाता हैं। इनके उदाहरण यों है:-[१] गच्छति - गच्छद-वह जाता है, [२] इच्छात = इच्छड़ वह इन्छा करता है, वह चाहना करता है, [२] यच्छति = अच्छड़ - वह विराम करता है, वह ठहरता है अथवा दह देता है, आस्ते = अच्छइवह उपस्थित होता है अथवा वह बैठना है। ||४-२१५॥
छिदि-भिदोन्दः ॥ ४-२१६ ॥
अनयोरन्त्यस्य नकाराक्रान्तो दकारी भवति ॥ छिन्दह । भिन्दइ॥
अर्थ.--संस्कृत-धातु 'छिद्' और 'भिद्' के प्राकृत रूपान्तर में अन्त्य 'द' के स्थान पर हलन्त 'नकार' पूर्वक 'द' अथात 'न्द' की प्राप्ति होती है । जैस:-छिनति-छिन्नड़ = वह छेदता है; भिमति भिन्नई-वह भेदता है अथवा वह काटता है ।। ४-२५६ ।
युध-बुध-गृध-ऋध-सिध--मुहां झः ॥ ४-२१७ ॥
एपामन्त्यस्य द्विरुक्तो झो भवति ॥ जुझइ । बुज्झइ । गिज्झइ । कुज्झइ । सिझइ । मुज्मई।
अर्थ:--संस्कृन-धातु 'युध , बुध् 'गृध , ऋध , सिध और मुह ' के अन्त्य व्यजन के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'झ' व्यजन की प्राप्ति हो जाती है । इन धातुओं में अन्य वनों संबंधी परिवर्तन पूर्वोक्त प्रथम पाद तथा द्वितीय पाद में वर्णित संविधान के अनुसार स्वयमेव समझ लेना चाहिये, तदनुसार युद्ध करने अर्थक संस्कृत धातु 'युध्' का 'जुन्म हो जाता हैं, 'समझने' अर्थक संस्कृत-धातु 'बुध्' का 'बुमा' बन जाता है । 'पासक्त होने' अर्थक संस्कृत-धातु 'गृव के स्थान पर 'गिज्म' की प्राप्ति हो जाती है । 'क्रोध करने' अर्थक धातु कथ्' 'कुम्भ के रूप में परिवर्तित होता है। 'सिद्ध होना सफल होना अर्थक सस्कृत-धातु सिध' सिझ' में बदल जाता है। यों 'मोहित होना' अर्थक धातु 'मुह.' का 'मुज्झ' बन जाता है । इसके क्रिया पदीय उदाहरण इस प्रकार है:-१) युध्यते = जुज्झइन्वह युद्ध करता है, (२) बुध्यते-बुज्झाइवह समझता है, (३) गृध्यति-गिझरबह श्रासक्त होता है, (४) अध्याति-कुज्वाइवह क्रोध करता है, (५) सिध्यत्ति-सिज्झाइ - वह सिर होता है अथवा वह मफल होता है और (6) मुहृयति-मुज्झाइ = वह मोहित होता है ।। ४-२१७ ।।