________________
[ ४०४ ]
1490400
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
*********0464600
'तथ्य' आदि प्रत्यय लगाने पर संस्कृत धातु 'मह' के स्थान पर प्राकृत भाषा 'घेनू' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। संस्कृत-प्रत्यय 'क्वा' वाले संबंधार्थ कृदन्त का उदाहरण यों है:- गृहीत्वा = तू और वेत्तुआण आदि ग्रहण करके । कभी कभी 'मह' धातु के स्थान पर उक्त संबंधार्थ कृदन्त के प्रत्यय लगने पर 'घेत्' धातु रूप की आदेश प्राप्ति नहीं भी होती हैं। जैसे:- गृहीत्वा गेव्हिअ = ग्रहण करके ।
*******44464
=
देवर्थ कृदन्त के प्रत्यय 'तुम्' सम्बन्धी उदाहरण 'प्रह घेन' का इस प्रकार है। - ग्रहीतुम् = प्रहण करने के लिये 'चाहिये' अर्थक 'तव्य' प्रत्यय का उदाहरण यों हैं: - श्रतिय्यम् = चेत्तव्यं महण करना हारने के यो 'ग्रह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में उक्त श्रयों में आदेश प्राप्त 'घेत' धातु रूप की स्थिति को जानना चाहिये ।। ४-११० ।।
I
वो वोत् ॥ ४-२११ ॥
वक्त वत् इत्यादेशो भवति क्वा-तुम् तध्येषु ।। वी
। वोतुं । वोत्तमं ।
अर्थ्ः–'करके' अर्थ वाले सम्बन्धार्थ कृदन्त के प्रत्यय जगने पर तथा 'के लिये' अर्थ वाले इत्यर्थ कृदन्त के प्रत्यय लगने पर और 'चाहिये' अर्थ वाले 'तथ्य' प्रत्यय लगने पर संस्कृत धातु 'वदु' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'वोत् धातु रूप की आदेश प्रामि होता है। उक्त तीनों प्रकार के क्रियापदों के उदाहरण कम से इस प्रकार हैं: - (t) 'ऋत्वा' प्रत्यय का उदाहरण:-उक्वा वतृण कह करके अथवा बाल करके (२) 'तुम' प्रत्यय का उदाहरण: - वक्तुम् - पोतुं बोलने के लिये श्रव कहने के लिये । (३) 'तय' प्रत्यय का उदाहरणः--वक्तव्यम् = वोत्तव्यं-बोलना चाहिये अथवा कहना चाहिये, बोलने के योग्य है अथवा कहने के योग्य है ।। १-२११ ।।
7
द- भुज-मुच तोन्त्यस्य ॥ ४-२१२ ॥
एषामन्त्यस्य क्त्वा तुम्-तयेषु तो भत्रति ॥ रोग | रोतु | रोत | भोलू । मोसु | भोत्तव्यं || मोण | मोत्तू | मोचनं ॥
अर्थः---संस्कृत-धातु 'रुद्= रोना भुन्= खाना और मुच = घोड़ना' के प्राकृत रूपान्तर में संबंधार्थ कदन्त, त्यभं कृदन्त और 'चाहिये' अर्थक 'तव्य' प्रत्यय लगाने पर धातुओं के अन्त में रहे हुए 'द' व्यञ्जनाक्षर के स्थान पर 'ल' व्यजनावर की प्राप्ति होती है। जैसे:- रुद्र भुज भुल और मुच = मुत।
उपरोक परिवर्तन के अतिरिक्त यह भी ध्यान में रहे कि सूत्र संख्या ४-२३७ के संविधान से उपरोक्त धातुओं में आदि अक्षरों में रहे हुए ''हद की गुण-अवस्था पात होकर 'ओ' स्वर की प्राप्ति