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भासेभिर,
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* नियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भासेभिसः ॥४-२०३ ॥ भासेर्भिस इत्यादेशो वा भवति ॥ भिसइ । भासइ ।।
अर्थ:--'प्रकाशमान होना, चमकना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भास' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'भिस' धातु-रूप की प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संस्कृत-धातु 'भास' का प्राकृत रूपान्तर 'भस' भी होता है। जैसेः-भासते-मिसइ अथवा भाइबह प्रकाशमान होता है अथवा चमकता है ।। ४-२०३ ।।
ग्रसेघिसः॥ ४-२०४॥ ग्रसेधिस इत्यादेशो वा भवति ॥ घिसइ । गसइ ।।
अर्थ:--'प्रसना, निगलना, भक्षण करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मप्स' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से घिस' धातु-रूप की श्रादेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गत भी होता है। जैसे प्रसात = घिसड़ अथवा गसइवह मसता है, वह निगलता है अथवा वह भक्षण करता है ।। ४-२०४।।
अवादगाहेर्वाहः ॥ ४-२०५ ॥ अवान् परस्य गाहे हि इत्यादेशो वा भवति । प्रोवाइइ । श्रोगाहह ॥
अर्थ:-'अव' उपसर्ग के साथ में रही हुई संस्कृत-धातु 'गाह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'वाह' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गाह भी होता है। ..
उपरोक्त संस्कृत-उपसर्ग 'अव' का प्राफूत-रूपान्तर क्षनों धातु रूपों में 'ओ' हो जाता है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिये । दानों धातु रूपों के उदाहरण क्रम से हम प्रकार है:-अवगाहयतिओवाहइ अथवा ओगाहइन्वह सम्यक प्रकार से ग्रहण करता है, वह अच्छी तरह से हृदयंगम करता है।॥४-२०५॥
आहहेश्वड-बलग्गी ।। ४-२०६॥ . पारुहेरेताबादेशी वा भवतः । चडइ । बलग्गइ । आरुहह ।।
अर्थ:-'पारोहण करना,चढ़ना' अर्थक संस्कृत-धातु 'श्रा सह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'चच और बला' में से दो धातु-रूपों को आदेश प्रानि होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संस्कृत-धातु 'आरूह' का प्राकृत-रुपान्तर 'पारुह' भी होना है । जैसे:-आरोहति-(१) चड:, () घलग्गड़ और (३) आरुहर = वह पारोहण करता है अथवा वह चढ़ता है ।। ४-२०६ ।।