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प्राकृत व्याकरण * mootoworrorosorrowroorkshorrorer.weetworrierotomorrorm
वर्णस्यारः ॥४-२३४॥ धातोरन्त्यस्य वर्णस्य भारादेशो भवति ॥ करइ । धरह । मरइ । वरह । सरह । हरद । तरइ ! जरह ॥
अर्थः-संस्कृत-धातुओं में स्थित अन्त्य स्वर 'ऋ' के स्थान पर प्राकृत-र.पान्तर में 'घर' अक्षरांश की प्रामि होती हैं । जैसे-कृ= फर, । धृ= धर | म मर । वृ= पर । स-सर । हु = हर । तृ- तर ।
और ज= जर | क्रियापदीय उहाहरण इस प्रकार हैं:-[१]करोति = फरइ - यह करता है। धरति =धर = वह धारण करता है। [घियते = मरइ = वह मरता है अथवा वह देह त्याग करता है। घृणोति = वरइ = वह पसंद करता है वह सगाइ-संबंध करता है अथवा वह सेवा करता है। [५] सरति-सरह वह जाता है, वह सरकता है। [5] हरति-हरदवह चुराता है, वह ले जाता है। [७] राति =तरह वह पार जाता है अथवा वह तैरता है । [८] जरति जरइ = बह अल्प होता है, वह छोटा होता है ।। ४-२३४ ।।
वृपादीनामरिः ॥४-२३५ ॥ रूप इत्येवं प्रकाराणां धातूनाम् ऋचर्णस्य अरिः इत्यादेशो भवति ॥ धृष् । बरिसइ ।। रुप । करिसह ।। मृष । मरिसइ ॥ हप् । हरिसइ ॥ येषामरिरादेशो दृश्यते ते वृषादयः ॥
अर्थ:-संस्कृत-भाषा में उपलब्ध 'पृथ्' आदि ऐमी कुछ धातुऐं हैं, जिनका प्राकृत-रूपान्तर होने पर इनमें अवस्थित्त 'ऋ' घर के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'अरि' अक्षांश की श्रादेश प्रामि हो जाती है। जैसे:-वृष: वरिस। कष = कारस । मष - मरिस । द्वषहरिस। इस श्रादेश-संविधान अनुमार जहाँ जहाँ पर अथवा जिस जिन धातु में '' स्वर के स्थान पर 'थार' आदेश रूप भक्षरांश दृष्टिगोचर होता हो तो उन उन धातुओं को 'वृषालय' धातु-श्रोण में प्रथवा धातु-गण के रूप में समझना चाहिये । वृत्ति में आये हुए धातुओं के क्रियापदीय उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-[१] वर्षति = परिसइ - बरसता है, धृष्टि करता है। फर्षतिन्करिसइ = वह खींचता है। [३] मर्पति = मरिसद- वह सहन करता है अथवा वह क्षमा करता है। [४]ष्यति = हरिसड़ - वह खुश होता है, वह प्रसन्न होता है ॥४-२३५ ।।
रुषादीनां दीर्घः ॥ ४-२३६ ॥ क्ष इत्येव प्रकरायां धातूनां स्वरस्य दी| भवति ।। रूसह । तूमइ । सूसइ । दूसइ । पुसइ । सीसह । इत्यादि ।
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