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[४१. ]
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * moreatemenerotiireorrorrowroteoroortoosorrorerarmsottomonam
उद्विजतेरन्त्यस्य वो भवति ॥ उविवइ । उव्वेवो ।
अर्थ:-'उद्वेग करना, खिन्न होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'उद् + विज = अद्विज' के अन्त्य व्यजनाक्षर 'ज' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'च' व्यन्जनातर की प्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे:-उहिजति (अथवा उदिजते) उठिवचइ == वह उद्वेग करता है, यह खिन्न होता है । उद्वेगः = उधेवा = शोक, रंज ॥४-२२७॥
खाद--धावो लुक् ॥ ४-२२८ ॥ अनयोरन्त्यस्य लुग भवति ॥ खाइ। खाइ। खाहिइ । खाउ । धाइ धाथिइ । धाउ ।। बहुलाधिकारात् वतमाना भविष्यविधि-श्रादि-एकवचन एव मत्रांते ।। तेनेह न भवति ॥ खादन्ति । धावन्ति । कचिन भवति । धावइ पुरी ।।
अर्थ:--'भोजन करना, खाना' अर्थक संस्कृत धातु 'सा' के अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का और 'दौड़ना' अर्थक संस्कृत धानु 'धाव' के अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'व' का प्राकृत भाषा में लोप होकर केवल 'खा' और 'धा' ऐसे धातु रूप की ही प्राप्ति होती है।
सूत्र-संख्या ४-२४० से उपरोक्त रोति से प्राप्त धातु खा' और 'धा' श्राकारान्त हो जाने से इनमें काल बोधक प्रत्यय लगने के पहिले विकरण रूप से 'थ' प्रत्यय की वैकलिक रूप से प्राति होती है। उदाहरण यों है:-12) खादति-खाइ अथवा खाअ-यह खाता है । (२) खादिष्यति = खाहिइ-वह खावेगा । (३) खादतु = खाउ- बह खावे । (४) धावति =चाई और घाइ = वह दौड़ता है । (५) धाषिष्यति धाहिइ = वह दोड़ेगा। (३) धातु = चाउ - वह दौड़े।
__ 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार-सामर्थ्य से 'खाद्' का 'खा' और 'धाव' का 'धा' वर्तमानकाल भविष्यतकाल और विधिलिङ प्रादि लकारों के एकवचन में ही होना है। इस कारण से बहुवचन म 'ख' और 'धा' ऐसा धातु रूप नहीं. हो कर 'खाद्' तथा 'धाव' ऐमा धातु रूप ही होगा । जैसे:-खादन्ति = खादन्ति =वं खाते हैं और धारान्ति -धावन्ति = व दौड़ते हैं।
कहीं कहीं पर संस्कृत-धातु 'धाव' के स्थान पर 'पा' रूप का प्राप्ति एक वचन में नहीं होकर 'धाव' रूप को प्राप्ति भी देखी जाती है। जैपेः -चावति पुरतः = धावह पुरओ = बह आंगे दौड़ता है। ||५- ८॥
स्मृजो रः ॥ ४-२२६ ॥ सृजो धातोरन्त्यस्य रो भवति ॥ निसिइ । वासिरह । बोसिरामि ॥