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* प्राकृत व्याकरण # 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000.
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मुहे गुम्म-गुम्मडौ ॥ ४-२०७ ।। मुहेरेतावादेशी वा भवतः ।। गुम्मइ । गुम्मडइ । मुझइ ।।
अर्थः-'मुग्ध होना अथवा मोहित होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मुह ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में में विकल्प से 'चड और गुम्मड' ऐसे दो धातु रूपों की श्रादेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'मुज्झ' भी होता है। तीनों धातु-रूपों के उदाहरण इस प्रकार है:-मुह्यति= (१) गुम्मइ, (२) गुम्मडइ, और (३) मुन्झई-वह मुग्ध होता है अथवा वह मोहित होता है ।
हेरशिजला जौ -१८८ दहेरेताबादेशी वा भवतः ।। अहिऊलइ । आलुखइ । डहइ ॥
अर्थ:-'जलाना, दहन करना' सार्थक संस्कृत-धातु 'दह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से अहिऊल' और पालुख' ऐसे दो धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती हैं । वैकल्पिक पक्ष होने से 'ह' भी होता है। उक्त तीनों धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:दहात-(१) अहिऊलइ (3) आलुखइ, और (F) डहड़ - बह जलाता है अथवा वह वहन करता है ।।४-२.८ ।।
ग्रहो वल--गेयह--हर--पंग--निरुवाराहिपच्चुत्राः ॥ १-२०८ ।। ग्रहेोते षडादेशो या भवन्ति ॥वलइ । गेण्हइ । हरइ । पंगइ । निरुवारइ । अहिपच्चुअइ ।
अर्थः-'प्रहण करना, लेना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में छह धातुरूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि ऋम से इस प्रकार है:- (१) बल, (२) गेएह, (३) हर, (४) पंग, (५) निरुवार और (६) अहिपचुप । इनके उदाहरण यों है:- गृहणाति = (१) वलइ, 10 मेण्हह, हरइ, (४) गइ, (१) निवारइ, और (1) अहिपच्चुअइ = वह ग्रहण करता है अथवा वह लेता है।।४-२०४
मत्वा-तुम्-तव्येषु-घेत् ॥ ४-२१० ॥ ग्रहः क्त्या-तुम्-तव्येषु घेत् इत्यादेशो वा भवति ॥ क्त्वा । घेसूण ! घेत्तुप्राण । क्वचिन्न भवति । मेरिअ । तुम् । घेत्तु । तव्य । घेत्तव्यं ।।
अर्थः-दो क्रियाओं के पूर्वापर संबंध को बताने वाले 'करके अर्थ वाले संबंधार्थ कृदन्त के मत्यय लगाने पर, तया के लिये' अर्भ वाले इत्वर्थ कान्त के प्रत्यय लगाने पर और 'चाहिये' अर्थ वाले