________________
[ ४०. ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * +++++++++++++++++++o666%28%9999999999999999999494499666444444
हसे गुज ॥४-१९६ ॥ हसेगुज इत्यादेशो वा भवति ।। गुञ्जइ । हसइ ।
अर्थ:-हँसता, हास्य करना' अर्थक संस्कृन-धातु 'हस' के स्थान पर प्राकृत-मषा में विकल्प से 'गुज' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'हस' भी होता है। जै:हसति-गुंजइ, अथवा इमद = वह हमता ई साथवा वह हास्य करता है॥४-१६६ ॥
स्रसेहँस-डिम्भो ॥४-१६७ ॥ स्र सेरेताबादेशौ वा भवतः ॥ ल्हसइ । परिन्हसइ सलिल-बसणं । डिम्मइ । संसइ ।।
अर्थ:-खिसकना, सरकना, गिर पड़ना' अथक संस्कृत धातु 'स्रस' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'महस और डिम्भ' ऐसे दो धातु रूपों को विकल्प से श्रादेश प्राप्ति होती है । देकल्पिक पक्ष होने से 'संस' भी होता है। तीनों के उदाहरण इस प्रकार है:-संसते = (१ एहसइ, (२. डिम्भर और (३) संसह = वह खिसकता है, वह सरकता है अथवा वह गिर पड़ता है।
'परि' उपसर्ग के साथ 'नम्' के स्थान पर आदेश प्राप्त 'बहप्त' धातु का रूप परिहप्त' भी बनता है । इसका उदाहरण इस प्रकार है:- सलिल-वसनं परिवंसते - सलिल वसणं परिल्हसई = पानी वाला ( अथवा पानों में रहा हुआ) कपड़ा खिसकता है अयवा सरकता है ।। ४-१६७ ॥
जोर्डर बोज्ज वजाः ॥४-१६८॥ असेरेते त्रय प्रादेशा वा भवन्ति ।। डरइ । बोज्जइ | वज्जइ । तसह ।
अर्थ:-'रना, भय सपना' अर्थक संस्कृत-धातु 'त्रम्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'बर, बोज्ज्ञ, और वज्ज' ऐसे तीन धातु-रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। वैश्विक पक्ष होने से 'तप्स' भी होता है। उक्त चारों धातु-रूपों के उदाहरण इस प्रकार है:-त्रस्यति डरइ, (२) बोजड़, (३) वज्जइ, और (४) तसङ्ग-वह उरता है अथवा भय खाता है ।। ४-१६.८ ।।
न्यसोणिम-णुमौ ॥ ४-१६६ ।। न्यस्थतेरतावादेशी भवतः ॥ णिमइ । णुमह ॥
अर्थ:--स्थापना करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'नि+अम् के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'णिम' और गुम' ऐसे वो धातु रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। दोनो के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-- न्यस्यति = णिमइ तथा णमइ = वह स्थापना करता है, वह रखता है अथवा वह धरता है ।। ४-१६ ॥