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* प्राकृत व्याकरण *
सन
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(२)अहिलय, (३) अहिलं, ( ४ ) वध ( 2 ) अम्फ, (६) मह, (७) सिंह और (८) विलुम्प । वैकल्पिक पक्ष होने से 'के' भी होता है । यो उक्त एकार्थक नव धातु रूपों के कम से उदाहरण इस प्रकार :- कांक्षति = (1) इ. (+) अहिलेवर, (३) अहिलंखड़ (1) खच्चर, (५) बम्फर (६) महइ, (७) सिह, (e) विलुम्प और (६) कंखर = वह इच्छा करता है, वह चाहना करता है अथवा वह अभिलाषा करता है ।।४ - १२२॥
प्रतीक्षेः सामय-विहीर - विरमालाः ॥ ४--१६३ ॥
प्रतीक्षते वय आदेशा वा भवन्ति । सामयइ | विहीर | चिरमालइ । पडिक्ख ||
अर्थः-'वह देखना, बाट ओहना अथवा प्रतीक्षा करना' अर्थक संस्कृत धातु 'प्रति + ईन्' श्लोक्ष' के स्थान पर प्राकृत भाषा में त्रिकल्प से तोन धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है:- (१) सामय, (२) विहीर, और (३) बरमाल । वैकल्पिक पक्ष होने से 'पक्खि' भी होता है। चारों धातु रूपों के उदाहरण कम से यों है:- प्रतीक्षते = (१) सामयइ. (२) विहीर, (३)विरमाल, और (४) पक्खि इ = वह राह देखता है, वह बाट जोहता है अथवा वह प्रतीक्षा करता ६ ।। ४-९६६ ।।
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तचे स्तच्छ--चच्छ--रम्प-रक्काः ॥ ४-१६४ ॥
तक्ष रेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ॥ तच्छइ । चच्छद । रम्प | रम्फइ | तक्खड़ ॥
अर्थः--'छालना, काटना' अर्थक संस्कृत धातु 'तक्ष' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से चार धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है: - (१), (२) छ (३) र (४) रक्फ | वैकल्पिक पक्ष होने से 'तषख भी होता है। पत्रो धातु रूपों के उदाहरण इस से इस प्रकार है: - तक्ष्णोति (१) तच्छइ, (१) चच्छ, (2) रम्पइ, (४) रम्फइ, और (५) तक्खड़ = वह छीलना है अथवा वह काटता है । ४-१६५ ॥
विकसे : कोवास वोसो ॥ ४ - १६५ ॥
विक्रेतावादेशी वा भवतः ॥ कांसह । बोसह | विश्रसह ||
अर्थ--' विकसित होना, खिन्नार्थक संस्कृत धातु 'त्रि+कस' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'कोचस और बस ऐसे दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'विस' भी होता है। तीनों धातु रूप के उदाहरण यों है: - विकसति = (१) को आसइ, (2) siness और fares = वह विकसित होता है अथवा वह खिलता है ॥ ४ - १६५ ।।