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. . *प्राकस यार* sometimesometertaineerinterestinentrementitientiretrette
. "ताम्" संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है । इसका प्राकूल रूप "तं" होता है इसमें सूत्र-संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप 'ता' में स्थित "श्रा" के स्थान पर "अ" को प्राप्ति और शेष-सानिका उपरोक्त "क' के समान ही होकर "" रूप सिद्ध हो जाता है। - "कासाम्" संस्कृत पष्ठयन्त बटुवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप "काण" होता है। इसमें सूत्र-संख्या-३-६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप “का" के प्राकृत रूप "का" में संस्कृतीय षष्ठी विभक्ति के बहु वचन में प्राप्तध्य प्रत्यय "श्राम" के संस्कृत विधानानुसार प्राप्त स्थानीय रूप "साम" के स्थान पर प्राकृत में "ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर "काण" रूप सिद्ध हो जाता है।
"यासाम्"संस्कृत षष्ठयन्त बहु वचन स्त्रीलिंग मर्वनाम का रूप है । इसका प्राकृत रूप 'जाण' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२४५ से "य" के स्थान पर "ज" की प्राप्ति और ३-६ से संस्कृतीय षष्ठी विभक्ति के बहु वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय "श्राम-साम् के स्थान पर प्राकृत में "" प्रत्यय की प्राप्ति होकर "जाण" रूप सिद्ध हो जाता है।
"तासाम्"संस्कृत षष्टयन्त बहु वयम स्त्रीलिंग प्रर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप "ताण' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-६ से संस्कृतीय षष्ठी विभक्ति के बहु वचन में पाठय प्रत्यय "प्राम"== साम् के स्थान पर प्राकृत में """ प्रत्यय की प्राप्ति होकर "ता" रूप सिद्ध हो जाता है । ३-३३।।
. छाया-हरिद्रयोः ॥ ३-३४ ॥ अनयो राप-प्रसङ्ग नाम्नः खियं वीर्चा भवति ।। लाही छाया । इलदी हलहा ।।
अर्थ:-संस्कृत स्त्रीलिंग शब्द 'छाया' और 'हरिद्रा' के प्राकृत रूपान्तर में अन्तत्र श्रा' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'डी-ई' की प्राप्ति होती है । जैसे:-छाथा-छाही और छाया था हरिद्रा हलहो
और हलदरा । संस्कृत में 'छाया' और 'इन्द्रिा' नित्य रूप से श्राकारान्त स्त्रीलिंग हैं, जब कि ये शब्द प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'कारान्त हो जाते हैं। इसीलिये ऐसा विधान बनाने की श्रावश्यकता
'नही' और 'छाया' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-२४९ में की गई है। 'हलही' और 'हलहा रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-८८ में का गई है। ॥३-३४॥
स्वस्लादेर्डा ॥ ३-३५ ।। स्त्रसादः स्त्रियां वर्तमानोद डा प्रत्ययो भवति ॥ ससा । नणन्दा । दुहिना । दुहिपाहिं । दृहिआसु । दुहिया-सुभो । गउआ ।।