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* बियोदय हिन्दी व्यारूपा सहित
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भविष्यामः भवितास्मः संस्कृत के क्रमशः भविष्यत् काल-वाचक लृट लकार और लुट लकार के तृतीय पुरुष कं बहुवचन के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप (ममान रूप से) होहिस्सा होहित्या, होमो, होस्सामा और होहामो होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत धातु 'भू=भव्' के स्थान पर प्राकूल में 'हो' अंग रूप की प्राति; तत्पश्चात प्रथम और द्वितीय रूपों में ३.१६५ से भविष्यत काल के अर्थ में तथा तृतीय पुरुष के बहुवचन के संदर्भ में क्रमश: 'हिस्सा और शिया प्रत्ययों की प्राप्ति होकर 'होहिस्सा और होहित्था' रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
तृतीय रूप होहिमो में सूत्र संख्या ३-१६० से उक्त रोसि से प्राप्त धातु अंग 'हो' में भविष्यत् काल-अशंक प्रत्यय 'हि' की प्राप्ति और ३-१४४ से भविष्यत् काल-बोधक प्राप्तांग 'होहि' में तृतीय पुरुष के अर्थ में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होहिमो रूप सिद्ध हो जाता है। बहुवचन
'होमो और हीहामी' रूपों को सिद्धि सूत्र- संख्या - १६७ में की गई है।
हसिष्यामः और हसितास्मः संस्कृत के क्रमशः भविष्यत् काल-वाचक लृट् लकार और लुद लकार के तृतीय पुरुष के बहुवचन के रूप है। इनके प्राकृत रूप ( समान रूप से ) हसिहिस्सा और सिरिया होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३--१५७ से मूल प्राकृत धातु " हस" में स्थित अन्स्य" " के स्थान पर आगे भविष्यत् काल वाचक प्रत्यय "हिस्सा और हित्था" का सद्भाव होने के कारण से 'इ' का प्राप्ति; तत्पश्चात् प्राप्तांग "हमि' में ३-१६८ से भविष्यत् काल के अर्थ में तथा तृतीय पुरुष के बहुवचन के संदर्भ में क्रमशः "हिस्सा और हिरथा" प्रत्ययों की संप्राप्ति होकर हसिहिम्सा और हसिहित्वा रूप सि हो जाते हैं । ३-१६= |.
मेः स्सं ॥ ३ - १६६॥
धातोः परो भविष्यति काले म्यादेशस्य स्थाने स्सं वा प्रयोक्तव्यः ॥ होस् । हसिस्सं । किस्स || प | होहिमि । होस्सानि । होद्दामि । कित्तइहिम ||
अर्थ:--भविष्यत् काल के अर्थ में धातुओं में सुनीय पुरुष के एक वचन चौक-प्रत्यय "सि" प रहने पर तथा भविष्यत्काल-योतक प्रत्यय "हि श्रथवा सा अथवा हा" होने पर कभी कभी वैकल्पिक रूप से ऐसा होता है कि उक्त भविष्यत् काल द्योतक प्रत्यय "हिस्सा हा के स्थान पर अर्थात् दोनों ही प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर धातुओं में केवल 'स्सं' प्रत्यय की प्रदेश-प्राप्ति होकर भविष्यत् काल के अर्थ में तृतीय पुरुष के एय वचन का अर्थ प्रकट हो जाता हूँ । यो धातुओं में रहे हुए 'हिस्सा हा' प्रत्ययों का भी लोप हो जाता है और 'मि' प्रत्यय का भी लोप हो जाता है; तथा दोनों ही प्रकार के इन लुप्त प्रथयों के स्थान पर केवल 'स्सं' प्रस्थय की ही आदेश-प्राप्ति होकर तृतीय पुरुष के एक वचन के अर्थ में भविष्यत् काल का रूप तैयार हो जाता है । जैसे:- भविष्यामि अथवा भवितास्मि
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