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हो ॥
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बिर्जे पाये तोह इत्यादेशो वा भवति । हुन्ति । भवन् । हुन्तो । श्रत्रितीति किम् ।
* प्राकृत व्याकरण *
अर्थ:-'वि' उपसर्ग नहीं होने की स्थिति में 'भूल' भव' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'हु' धातु रूप की आदेश प्रति होती है। जैसे- भवन्ति हुन्ति = वे होते हैं । भवन् - दुम्ता = होता हुआ। इन उदाहरणों में 'भय' के स्थान पर '' का प्रयोग पदर्शित किया गया है।
प्रश्नः - 'वि' उपसर्ग का निषेध क्यों किया गया हूँ ?
भूते स्पष्टच कर्तरि
भवतीत्यर्थः ॥
उत्तर:- जहाँ पर 'बि' उपसर्ग पूर्वक अर्थ होगा वहां पर 'भू=भव' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'हु' की आदेश प्राप्ति नहीं होगी, जैसे- भत्रति = हाइ=वह विशेष प्रकार से होता है। यों यहाँ पर 'हु' रूप का निषेध कर दिया गया है ।। ४-६१ ॥
पृथकू -
[ ३६१ ।
- स्पष्टे व्त्रिः ॥ ४-६२ ।।
३ ककस्य व न पहुइ । पते । पभवेइ ||
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बिड इत्यादेशो भवति || वड | पृथक् स्पष्टो वा
अर्थः-- पृथक् अर्थात अलग करने के अर्थ में और स्पष्टीकरण करने के अर्थ में 'भू=भव' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'डि' धातुरूप की श्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे- पृथग्भवति अथवा स्पष्ट भषति = णिव्वडर = वह थलग होता है अथवा वह स्पष्ट होता है ।। ४-६२ ।।
प्रभौ हुप्पो वा ॥
४-६३ ॥
इत्यादेशो वा भवति ॥ प्रभुत्वं नः प्रपूर्वस्यैवार्थः । भङ्ग चित्र
अर्थः- जब 'भू= भव्' धातु के साथ में 'प्र' उपसर्ग जुड़ा हुआ हो और जब 'प्र' उमर्ग का अर्थ शक्तिसम्पन्नता हो तो ऐसे समय में प्र + भ्रव धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'हुप्प' आदेश की प्राप्ति होगी। इसका तात्पर्य यही है कि शक्ति सम्पन्नता' अर्थ पूर्वक 'भू=भत्र' धातु को विकल्प से 'हुप्प' प्रदेश-प्राप्ति होती हैं | पक्षान्तर में 'पत्र' प्राप्ति का भी संविधान जावना चाहिये । जैसे - हे अंगे चैव न प्रभवति मुन्दर अंगों वाली शिव ही वह शक्ति सम्पन्न नहीं होता है । इसका तपान्तर इस प्रकार है-अंगे फन पशु पक्षान्तर में 'पहुप्यह' के स्थान पर 'पभषेड़' रूप भी बनता है ।। ४-६३ ।।