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* प्रियोंदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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[?] हिम्मति हिम्म= जाती है अथवा वह गमन करता है । [२] निईम्मति= पीहम्मद वह निकलती है अथवा वह बाहर जाता है । [३] आहम्मति = आहम्मद = वह आता है अथवा वह श्रागमन करता है। प्रहम्मति = पहम्मद = वह तेज गति से जाता है, वह शीघ्रतापूर्वक गवन करता है। इस प्रकार से 'जाना अर्थ हम्म धातु के विभिन्न प्रयोगों को समझ लेना चाहिये ।। ४-१६२ ।।
आङा
अहिपच्चुत्रः ॥ ४-१६३ ॥
आङा सहितस्य गमेः अहिश्च त्र इत्यादेशो वा भवति ॥ श्रहिपच अह । पक्षे ।
यामध्छ ।
अर्थ:--' ' उपसर्ग सहित संस्कृत धातु 'गम्छ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पिच्चु (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'आगच्छ' भी होता है। जैसे:आगच्छति = अपिच्चुअड़ अथवा आगच्छड़ = वह आता है ॥ ४-१६० ।।
समा भिडः ॥ ४-१६४ ॥
समायुक्तस्य गमेः अभिड इत्यादेशो वा भवति ।। अभिडइ । संगच्छ ॥
=
अर्थः--'सं' उपसर्गं सहित संस्कृत धातु 'गम गच्छ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'मिड' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'संगच्छ' भी होता है । जैसे :संगच्छति = अमिड अथवा संगच्छ वह संगति करता है अथवा वह मिलती है ।। ४-१६४ ।।
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श्रभ्याङोम्मत्थः ॥ ४–१६५ ॥
स्याङ भ्यां युक्तस्य गमेः उम्मत्थः इत्यादेशो वा भवति ।। उम्मत्थइ । अन्भागच्छ । श्रभिमुखमागच्छतीत्यर्थः ॥
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' के स्थान पर
अर्थ:- 'अभि' उपसर्ग तथा 'आ' उपसर्गसहित संस्कृत धातु 'गम् = गच्छ' प्राकृत भाषा में विकल्प से उम्मथ (धातु) रूप की आदेशा प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अब्भागच्छ' भी होता है। जैसे :- अभ्यागच्छति = उम्पत्थ अथवा अच्भागच्छइ = वह सामने आता है, यह अभिमुख आती है ।। ४-१६५ ।।
प्रत्याङा पलोट्टः ॥ ४-१६६ ॥
प्रत्याख भ्यां युक्तस्य गमेः पलोड इत्यादेशो वा भवति || पलोट्टई । पञ्चागच्छा ॥