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* पाकृत व्याकरण *
[३८६ ]
गमेरइ-अइच्छाणुवज्जावज्जसोककुसा कुस-पच्चड्ड-पच्छन्द णिम्मह-णी-गौणणोलुक-पदअ रम्भ-परिमल्ल-बोल
परिअल णिरिणास णिवहावसेहावहरा ॥ ४-१६२ ॥ गमेरेते एकविंशतिदेगा या गान्ति : पाई। अच्छा : अणुवज्जइ । अवज्जसइ । उसइ । अमइ । पचहा । पच्छन्दइ । खिम्महई । णोइ । णोणाइ । णीलुक्कई । पदबइ। रम्मइ । परिअल्लह । बोलइ । परिअलइ । णिरिणासइ । णिवहा । अत्रसेहह । अपहरइ । पक्षे । गच्छइ | हम्मइ । णिहम्मद । णीहम्मइ। प्राहम्मइ । पहम्मद । इत्येते तु हम्म गसाबित्यस्यैव भविष्यन्ति ।।
अर्थ:--'गमन करना, जाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'गम-गच्छ' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में इक्कीस (धातु) रूपों की प्रादेश प्राप्ति विकल्प से होती है। जो कि कम से इस प्रकार है:- (१) अई, (२) अइच्छ, (३) अणुबमा (४) अवज्ञाम. (५) उस्कुप. (६) अक्कुस, (७) १चडू, (८) पच्छन्द, (६) णिम्मह, (१०) णो. (११) णीण, (१०) णीलुक्क, (१३) पदअ, (१४) रम्भ, (१५) परिमल्ल, (१६) वोल, (१७) परिमल, (१८) रिपरिणाप्त, (१६) शिवह, (२०) अवसह, और (२१) अवहर ।
वैकल्पिक पक्ष होने से 'गच्छ' भी होता है । उक्त बायोप्स प्रकार के धातु-रूपों के उदाहरण कम से इस प्रकार है :
गच्छति = (१) अईई. (२) भइमलाइ, (३) अणुवउजइ, (४) अवजमद, (५) अक्कुपद, (७) अकुमइ, (७) पवइ, (८) पच्छन्दइ, (ह) जिम्महई, (१०) पीइ, (११) णोणड, (१०) णीलुकाइ, (१३) पदश्रइ, (१४) रम्भद, (१५) परिश्राना, (१६) वालइ, (१५) परिअलइ, (१८) णिरिणामइ, {१६) रिणवहर, (२०) अषसेहइ. (२१) अवहरई, और (२२) गच्छद = वह गमन करता है अथवा वह गमन करती है।
संस्कृत-भाषा में 'गमन करना, जाना' अर्थक 'हम्म' ऐपी एक और धातु है इसके आधार से प्राकृत-भाषा में भी जाना' अर्थ में 'हम्म' धातु रूप का प्रयोग देखा जाता है:-हम्मति = हम्मद-वह जाता है अथवा वह गमन करती है।
उपरोक्त 'हम्म' धातु के पूर्व में कम से णि, णो, आ, और प. उपसर्गों की संयोजना कर के इसी 'जाना-अर्थ में चार (धातु) रूमों का और भी निर्माण कर लिया जाता है, जो कि क्रम से इस प्रकार है :- (१) हिम्म, (२) गीहम्म, (३) श्राहम्म, और (४) पहम्म । इनके उदाहरण इस प्रकार है :