________________
* प्राकृत व्याकरण 2
[ ३६१ ] 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अर्थ:-'प्रनि' उपसर्ग और 'आ' उपसर्ग सहिन संस्कृत-घातु 'गम् = गच्छ' के स्थान पर प्राकृत. भाषा में विकल्प से पलोह' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है । पक्षान्तर में संस्कृत-धातु-रूप 'प्रति + श्रा + गम् - प्रत्यागमछ' का प्राकृत-रूपान्तर पच्चागच्छ' भी होता है। जैसे:-अत्यागच्छति = पलोद्दा अथवा पच्चागच्छड़ - वह लौटता है अथवा वह वापिस आती है ॥४-१६६ ।।
शमेः पडिसा-परिसामौ ॥ ४-१६७ ॥ शमेरेतावादेशी वा भवतः ॥ पडिसाइ । परिसामइ । समइ ।।
अर्थः-शान्त होना, लुब्ध नहीं होना' अर्थक संस्कृत धातु 'शम् = शाम्य' के स्थान पर प्राकृतभाषा में विकल्प से 'पडिमा और परिसाम' की श्रादेश प्राप्ति होती है ।'सम'भी होता है। तीनों धातु-रूपों के नदाहरण कम से इस प्रकार है: शाम्यति = पाडेसाइ, परिसामइ और समइ = वह शान्त होता है श्रश्रवा वह क्षुब्ध नहीं होता है ॥४-१६७ ॥
रमेः संखुड्ड-खेड्डोभाव-किलिकिञ्च-कोट्टुम
भोट्राय-शीसर-बेलनाः ॥४-१६८ ।। रमतेरेतेष्टादेशा था भान्ति ॥ संखुडइ । खेड्इ । उम्भावइ । किलिकिश्चइ । कोट्ठमा । मोट्टायइ । णीसरह । वनइ । रमइ ।
अर्थ:-'क्रीड़ा करना खेलना' अर्थक संस्कृत धातु 'रम्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पाठ धातु रूपों की श्रादेश प्रानि होती है। जो कि कम से इस प्रकार हैं:-(१) संखुड, (२) खेड़, (३) मात्र, (४) किलिकिञ्च, (५) कोटुम, (६) मोट्टाय. (७) पीसर और (८) वेल्ल । वैकल्पिक पक्ष होने से 'रम' भी होता है। उक्त 'खेलना' अर्थक नव ही धातु रूपों के उदाहरण कम से इस प्रकार हैं:रमते = (१) संखुट्टइ, (२) खेद (३) उडभावइ, १४) किलिकिश्चद, (५) कोट्टुमद, (६) मोट्टायइ, (७) णीसाइ (८) वेल्जाइ और १६) रमइ बह खेलता है अथवा वह क्रीड़ा करता है ।। ४-१६० ।।
पूरेरग्घाडाग्यवोध्दुमाङ गुमाहिरेमाः ॥४-१६६ ॥ पूररतेपश्चादेशा या भवन्ति ॥ अग्घाडइ । अग्धषइ । उद्धु माइ । अंगुमइ । अहिरेमइ । पूरह ॥
___अर्थ:- पूर्ति करना, पूरा करना' अर्थक संस्कृत धातु 'पूर' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पांच धातु रूपों की भावेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार हैं:-(१) अग्यास, (२) अग्धव,