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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * •rvisorrorreness.or000000000000000000000000000000000000ornstoortoon
के स्थान १५ प्रोअरः कतु को भी प्रानि होगी । सदाहरण यों है:-अवतरति =(१) ओहद, (२) औरसइ और (३) ओभरइ = वह नीचे उतरता है. ।। ४-५॥.
शकेश्चय--तर--तीर-पाराः ॥ ४-८६॥ शक्नोतरते चत्वार श्रादेशा वा भवन्ति ॥ चयः । तरह । तीरइ । पारइ । सकइ ।। स्थजतेर पि चयइ । हानि करोति । तरतेरपि तरइ ।। तीरयतेरपि तौर६ ।। पारयतेरपि पाह। कर्म समाप्नोति ।।
__अर्थ:--'सकना-समर्थ होना' अर्थक संस्कृत-धालु 'शक' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से चार धातु का श्रादेश प्राप्ति होती है । ओ कि क्रम से इस प्रकार है:-(१) ६य. (२) तर, (३) तार
और (४) पार । पक्षान्तर में 'शक के स्थान पर 'सक' को भी प्राप्ति होगो । पाँचों धातु-रू करदाहरण कम से इस प्रकार है:-शनोति = (१)चयइ. (२)तरइ, (३)तारइ, (४)पारइ ओर (५)सक्का = वह समर्थ होता है। उपरोक्त आदेश-प्राप्त चारों धातु द्वि-अर्थक है, अतएव इन के क्रियापीय रूप इस प्रकार से होंगे:-(१)त्यजति = अपहवह छोड़ता है अथवा यह हानि करती है । १२) तरति - तरह वह तैरता है। (३ तीरयात तीरइ-वह समाप्त करता है अथवा वह परिपूर्ण करता है । और (४)पारयति - पारेड-वह पार पहुँचता है अथवा पूर्ण करता है-कार्य की समाप्ति करता है। यों चारों श्रादेश प्राप्त धातु द्वि-अर्थक होने से संबंधानुसार ही इसका अर्थ लगाया जाना चाहिये; यहां तात्पर्य वृत्तिकार का है॥४-१६॥
पकस्थकः ॥४-७॥
फकते स्थक्क इत्यादेशो वा भवति ।। थक्कइ ॥
अर्थ:--'नीचे जामा' अर्थक संस्कृन-धातु 'फ' के स्थान का प्राक-भाषा में 'थक धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे - पति-थका = वह नीचे जाता है अथवा वह अनाचरण करतो है। ४-८७ ।।
श्लोकः सलहः ।।४-८ ॥ श्लाघतः सलह इत्यादेशी मवति ।। ससा || .:
अर्थ:-'प्रशंमा करेसा' अर्थक संस्कृत-धातु माध' के स्थान पर प्राकन-भाषा में 'मला' धातु को आदेश प्राप्ति होती है। जैसे लापते स व प्रशसा करता है।