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* प्राकृत व्याकरण
३७५ ] m00000000000000rtis*6000-1400000000000000000000000000000000000000+ (४) कम्मेइ, (५) अण्हइ, (६) चमहइ, (७) समाणइ, (८) बडइ, पज्ञान्तर में सुजा- वह भोजन करता है, वह खाती है ।। ४-१९० ॥.
वोपेन कम्मवः ॥४-१११ ॥ उपेन युक्तस्य भुजे: कम्मव इत्यादेशो वा भवति ॥ कम्मवइ । उबहुज्जह ॥
अर्थ:-'उप' उपसर्ग सहित भुज धातु के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'कम्मष' (धातु -)रूप को श्रादेश प्रानि होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'उबहुज्ज' को भी प्राप्ति होगी। उदाहरण यों है:--उप मुनक्ति = कम्मवड़ अथवा पक्षान्तर में उपहुज्जह = वह उपभोग करना है ४.-१११॥.
__ घटे गढः ॥४-११२ ॥ धटते गंह इत्यादेशो वा भवति ।। गढइ । घडइ ॥
अर्थ:-'बनाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'घट्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'गद' (धातु --) रूप की आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से घर' को भी प्राप्ति होगी। जैसे:षटति (अथवा पटते ) = गढइ अथवा घडइ - वह बनाता है ।। ४. ११२ ॥
समो गलः ॥४-११३॥ सम्पूर्वस्य घटते गेल इत्यादेशो वा भवति ॥ संगलइ । संघडद ।
अर्थ –'मम् = सं' उपसर्ग सहित संस्कृत--धातु 'घट के स्थान पर प्राकृत--भाषा में विकल्प से 'गल' ( धातु ..) रूप की श्रादेश प्राप्ति होती है, यो संस्कृत-धातु 'संघट' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'संगल' धातु-रूप का आदेश-प्राप्ति होगी। 'संघड = भी प्राप्त होगा । जैसे-संघटते. संगलाइ अथवा सघडइ - वह संघटित करता है, वह मिलाती है ।। ४--११३ ।।. .
हासेन स्फुटे मुरः ।। ४-११४ ॥ हासेन करणेन यः स्फुटिस्तस्य सुरादेशी घा भवति स मुरइ । हासेन स्फुटति ।।.
अर्थ:--'मुस्कराना, सामान्य रूप से हंसनी' अर्थक संस्कृत धातु 'स्फुट' के स्थान पर प्राकृतभाषा में विकल्प से 'मुर' (धातु-) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'फुट' की भी प्राप्ति होगी । जैसे: हासेम स्फुटति = सुरइ अथवा फुट वह हँसी के कारण से प्रसन्न होता है अथवा खिलती है।। १.११४ ।।,