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[ ३७८ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * aorrenorrrrrrrrrrrrrrrorepresenterstoorrorroresrorrerootori.in
ह लादेरवअच्छः ॥ ४-१२२ ।। लादते एय॑न्तस्याएयन्तस्य च अवअच्छ इत्यादेशो भवति ।। अवअच्छह । ह्लादयति था । इकारो ण्यन्तस्थापि परिग्रहार्थः॥
अर्थ:-'अानन्द पाना अथवा खुश होना' अर्थक संस्कृत धातु 'ह्लाद के स्थान पर प्राकृत भाषा में सामान्य कालवाचक क्रिया कप में' अथवा 'प्रेरणार्थक वाचक क्रिया रूप में दोनों ही स्थितियों में केवल 'अवअच्छ' धातु रूप की यादेश प्रानि होती है। 'अप्रेरणार्थक क्रियावाचक रूप' का पुशहाण यों है:-इलादते = अवअच्छइ-वह आनन्द पाता है, वह खुश होती है। प्रेरणार्थक क्रियावाचक रूप का दृष्टान्त इस प्रकार से है:- हलादयति अवअच्छइ-वह आनन्द कराता है, वह खुश कराती है। यों दोनों स्थितियों में प्राकृत भाषा में उपरोक्त रीति से केवल एक हो धातु रूप होता है।
'इफा' चारण 'मूत्र किया' में प्रेरणार्थक प्रत्यय 'णि' का बोधक अथवा संग्राहक माना जाता है; ऐस। ध्यान रखा जाना चाहिये ॥ ४-२२२ ।।
नेः सदो मज्जः ॥४-१२३ ॥
निपूर्वस्य सदो मज्ज इत्यादेशो भवति ।' अत्ता एस्थ णुमज्जइ।।
अर्थ:-नि' उपसर्ग महित संस्कृत धातु 'मद् के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'मज्ज' धातु रूप की श्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे:-आत्मा अत्र निसीवति अत्ता एत्थ पु मज्जाइ = अात्मा यहाँ पर बैठत्ती है। ४-१२३ ॥
छिदेदुहाव-णिच्छल्ल-णिज्झोड-णिवर-णिल्लूर-लूराः ॥ ४-१२४ ।।
छिदेरेते पडादेशा बा भवन्ति ।' दुहावइ । णिच्छल्लइ । णिझोडइ । णिव्यरइ । णिल्लूरइ । लूरह 1 पक्षे । छिन्दइ ॥
अर्थ:-छेदना, खण्डित करना' अर्थक संस्कृत भानु 'छिद' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से छद धातु रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार है:-(१) तुहाव, (२) णिच्छल्न, (३) णिज्झोड. (४) णिवर, (५) णिल्लूर और (६) लूर । वैकल्पिक पक्ष होने से छिन्द' की भी प्रानि होगी । उदाहरण क्रम से यों हैं:-छिमात-(१) बुहावड़, (२) णिच्छलइ, (B)णिझोडई (४) पियरइ, (५) पिल्लूरइ, (5) लूरइ । पक्षान्तर में छिन्नइ-वह छेरता है अथवा वह स्खण्डित करती है॥४-१५॥