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* प्राकृत व्याकरण *
[३८१ । wo0000000000000000000000nberrowomroorroroork00000000000000000000000mm
अर्थः-'स्वेद करना, अफसोस करना' अर्थक संस्कृत-धातु खिदू' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'जूर और विनर' ऐसे दो धातु-रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष में विज्ज' को भी प्रानि होगी । उदाहरण यों है:-खिधते =(१) जरइ, (३) पिसूरद और पक्ष में खिज्जा - वह खेद करता है, वह अफसोस करती है ।। ४-५३२ ।।
रुधेरुत्थतः ॥४-१३३ ॥ रुधेरुत्था इत्यादेशो वा भवति ॥ उत्थचन्ह । रुन्धइ ।।
अर्थ:--'रोकना' अर्थक संस्कृत-धातु 'रुध्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'उत्थघ' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकलिपक पक्ष होने से 'गन्ध' की भी प्राप्ति होगी । जैसेः-रुणाई = उत्थंधड़ अथवा रुन्धइवह रोकता है ।। ४-१३३ ।।
निषेधेहकः ॥ ४-१३ ॥ निषेधतेर्हक्क इत्गादेशो वा भवति ॥ हकइ । निसेहह ॥
अर्थ:-'निषेध करना, निधारण करना' अर्थक संस्कृत-धातु नि + षिध' के स्थान पर प्राकृतभाषा में विकल्प से 'इक' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है । वैक िपक पक्ष होने से निसेह' भो होगा। जैसे:-मिषेधति - हकइ अथवा निसेहइ - वह निषेध करती है अथवा निवारण करता है ।। ४-१३४॥
ऋधेरः ॥ ४-१३५ ॥ ऋधे र इत्यादेशो वा भवति ।। जूरइ । कुज्झइ ।'
अर्थ:-कोध करना, गुस्सा करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'ध' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'जूर' धातु-रूप को आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'कुम्भ' भी होगा। जैसे:-कुध्यति =जूर अथवा कुज्झइ = वह क्रोध करती है, वह गुस्सा करता है ।। ४-१३६ ।।
जनो जा-जम्मौ ॥४-१३६ ॥ जायते र्जा जम्म इत्यादेशी भवतः !। जाभइ । जम्मइ ।।
अर्थ:-'उत्पन्न होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'जम् ' के स्थान पर प्राकृत - भाषा में 'जा' और "जम्म' की भावेश-प्राप्ति होती है । जैसे:-जायते =जाब और जम्मा - वह उत्पन्न होला है। ॥४-१३६॥