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* शियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * morroronsooriterovetooterrowors.reatreesrooto.000000000000rstronom
उत्पूर्वस्य चिरेते षडादेशा वा भवन्ति ॥ गुलगुज्छ । उत्थंघइ । अल्लत्याइ उन्भुत्तइ। उस्सिकइ । हक्खुवइ । उक्खिवइ ।।
अर्थ:-'उत्' उपसर्ग सहित संस्कृत धातु 'क्षिप्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से छह धातु रूपों की श्रादेश प्राप्ति होती है। जो कि इप्त प्रकार है:-(१) गुलगन्छ, (२) उत्थंध, (३) अल्लत्य, (४) उम्भुत्त, (५) उस्मिक और (६) हक्खुव । वैकल्पिक पक्ष होने से उक्खिव भो होगा। उदाहरण इस प्रकार हैं:-उस्क्षिपति - (१) गुलगुञ्छइ, (२) 'उत्थंघइ, (३) अल्लत्थर, (४) उपभुधा (५) उरिस. कद, (६) हकाबुवइ । पक्षान्तर में क्खिबह-वह ऊँचा फेंकता है ।। ४-१४४ ।।
आक्षिपीरवः ॥४-१४५ ॥ श्राङ, पूर्वस्य क्षिपेरिव इत्यादेशो वा भवति ॥ णीरवइ । अक्खियह ।
अर्थः- 'आ' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'क्षिप' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'णोत्व' को आदेश प्राप्ति होता है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अक्खिव ' भी होगा। जैसे:आक्षिपति = णीरवड़ अथवा अविखवा वह आक्षेप करती है, वह टीका करता है अथवा वह दोषारोपण करती है ।। ४-१४५ ॥
स्वपेः कमवस-लिस-लोट्टाः ॥४-१४६ ॥ स्वरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ कमवसइ । लिसइ । लोइ । सुअइ ॥
अर्थ:- सोना अथवा सो जाना, शयन करना ' अर्थक संस्कृत धातु । स्वप' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से तीन ( धातु ) रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है (१) कमघस, (२)लिस और (३) लोट्ट । वैकल्पिक पक्ष होने से 'सुप' भी होगा। उदाहरण यों है:- स्वपिति = (१) कमवसह, (२) लिसइ, (३) लोहड़ अथवा मुअइ - वह सोता है वह शयन करती है ।। ४-१४६ ॥
वेपेरायम्बायज्भो ॥४-१४७ ।। वेपेरायम्य पायजम इत्यादेशौ वा भवतः ।। प्रायम्बइ । श्रायज्झइ । वेवइ ।।
अर्थः- 'कापना अथवा हिलना ' अर्थक संस्कृत-धातु 'वे' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से श्रायम्ब और श्रायझ' ऐसे दो ( घातु + रूपों को आदेश प्राप्ति होती है
वैकल्पिक-पक्ष होने से वेव' भी होगा । उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:-वेपते(१) आयम्बइ, () आयडझाइ अथवा (३) देव- वह काफ्ती है, वह हिलता है अथवा कह थरथरासी है ।। ४-१४७॥