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* प्राकृत व्याकरण *
[३६७ ] .00000000000000000000000+rokerestrendisexstoriecord+0000000000000000 'वावर' धातु की भी प्राप्ति होगी। जैसे-व्याप्रियते - आअड्डेइ अथवा वावरे = वह काम में लगता
संवृगेः साहर-साहट्टी ॥४-८२ ॥ संवृणोतः साहर साहस इत्यादेशौ वा भवतः ॥ साहरघ । साहट्टाइ । संवरह ॥
अर्थ:-'संवरण करना, समेटना' अर्थक संस्कृत धातु स + यु' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प सं दो धातु 'साहर और साहट्ट का आदेश प्राप्ति होती है । पक्षान्तर में 'सं +' के स्थान पर 'संघर' धातु की भी प्राप्ति होगी। तीनों धातुओं के उदाहरण कम से इस प्रकार हैं:-संवृणीति = (१) साहरइ, (२) साहट्टइ और (३) संवरइ = वह संवरण करता है अथवा वह समेटता ।। ४.८२ ।।
आहङ : सन्नामः ॥४-८३॥
आद्रियतेः सन्नाम इत्यादेशो वा भवति । सम्नामइ । आदरह ।।
अर्थ:-'श्रादर करना-सम्मान करना' अर्थक संस्कृत-धातु'मा+द'के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकरूप से सन्नाम' धातु को आदेश प्राप्ति होती है। काल्पक पक्ष होने से 'आ +' के स्थान पर 'वर' धातु को भी प्राप्ति होगी । जैसे:-आद्रियते = सन्नामइ अथवा आवरह-वह आदर करता है अथवा वह सम्मान करता है--सन्मान करता है ॥ ४-८३ ॥
प्रहगे: सारः ॥४-८४॥
प्रहरतः सार इत्यादेशा वा भवति || सारइ । पहरइ ।।.
अर्थ:-'प्रहार परना' अर्थक संस्कृत-भातु 'प्र + ह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'मार' धातु की आदेश मात्र होती है । वैकल्पिक पक्ष हाने से 'म + हूँ के स्थान पर 'पहर' को मा प्राप्ति होगी। दोनों धातु रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:--प्रहरति = सारड़ अथवा पहरड़वह प्रहार करता है - अह चोट करती है । ४-८४ ।।
अवतरे रोह-पोरसौ ॥४-८५॥ अवतरतेः ओह ओरस इत्यादेशो का भवतः ॥ मोह । भोरसह । ओअरई।.
अर्थ:-नीचे उतरना' अर्थक संस्कृत- धातु 'म + तृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'श्रोह तथा मोरस' ऐसे दो धातु को श्रादेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अब + तृ' धातु