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* पांकृत व्याकरण * 200000.00600-8000000000000000000000000000000000000000000000000000000+
विस्मुः पम्हुस-किम्हर-वीसराः ॥ ४-७५ ॥ विस्मरतेरते श्रादेशा भवन्ति ॥ पम्हुसई । विभहरइ । बीसरह ।।
अर्थः-- भूलना-भूल जाना' अथवा विस्मरण करना' अर्थक संस्कृत धातु विस्मर' के स्थान पर प्राकृत भाषा में सान धातु की प्रादेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:-(१) पम्हुम, (२) बिम्हर
और (३) वीमर । इनके उदाहरण इस प्रकार हैं:-विस्मराति-पम्हसद, विम्हरइ और बीसरई - वह भूलना है अथवा वह विस्मरण करना है ।। ४-४४11.
व्यागेः कोक-पोक्को ।।४-७६ ॥
व्याहरतेरेताबादेशी वा भवतः ।। कोक्कइ । हृस्वत्वे तु कुक्कई । पोक्कइ । पक्षे। वाहरइ ॥
अर्थ:--'चुलाना,अाह्वान करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'ध्याल के स्थान पर प्रकृत--भाषा में विकल्प से वो धातु-रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है जो कि कम से इस प्रकार हैं:-(कोक और पोक्फ । सूत्र-संख्या १.८४ से विकल्प से दीर्घ स्वर के स्थान पर आगे संयुक्त व्यञ्जन होने पर हस्व स्वर को प्रति होती है अत: 'कोक के स्थान पर 'कुक' को भी प्राप्ति हो सकता है, पक्षान्तर में 'व्याह' धातु का 'वाहर' रूप भी प्राप्त होगा ।
उनन चारों धातु-रूपों के उहिरण कम से इस प्रकार है:--मुयाहरांत= (१)कोड, (२)कुकर (३)ोकर और (४)वाहरइ-वह बुलाता है, वह अाह्वान करता है ।। ४-७६ ॥ .
प्रसरेः पयल्लोवेल्लौ॥४-७७॥ प्रसरतः पयन उवेल्ल इत्येतावादेशी वा भवतः ।। पयल्लइ । उवेलाइ । पसरह ॥
अर्थः-पसरना, फैलना' अथक संस्कृत धातु 'प्र + मृ' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विश्वरूप से दो धातु का आदेश प्राप्ति होती है। के ये हैं:-) पयज और (२) वक्त । पक्षास्तर में प्र+म' के स्थान पपर' की भी प्राप्ति होगा । जे पेः-प्रसंरॉति-(१)या(क) और (३) सरबह पता है अथवा वह फैलता है ।। ४.६७ ।।
- महमहो गन्धे ॥४-७८ ॥ प्रमरते गन्ध विपये महमह इत्यादेशो वा भवति ।। महमहइ माई । मालइ-गन्धों पसरह 11 गन्ध इति किम् । पसर ॥ . .