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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * poorosofa006+0+poorrent6446046koottostor00000000000000000000000000004 (१)अग्ध, (२)छज, (३)सह, (४)रीर और (५)रेह । रूपान्तर में राय' की भी प्राप्ति क्षेगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-राजते = (१)अग्धड़, छजड़, (सहड़, (४)रीरइ, (५)रेहइ, और रायह वह शोभता है, वह थिराजता है अथवा वह चमकता है ॥ ४-- १०० ।।.
मस्जेराउड्ड-णिउड्ड-बुड्ड-खुप्पाः ॥ ४-१०१ ॥
मज्जतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ।। प्राउड्डा । णिउड्डइ । बुडइ । खुप्पड़ । मज्जह ).
अर्थ:-'मजन करना, डूबना, अथवा स्नान करना' अर्थक मंस्कृत-धातु 'मस्ज' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से घार (धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होतो है । (२,या उड्ड, (२णिनड़, (३)बुद्ध और (१)खुप्प । वैकल्पिक-पक्ष होने से मज' को प्राप्ति भी होगी । उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-मज्जति - १)आउडइ, (२)णिउडइ, (३)बुबडइ, (४)खप्पड़, और (५)मजद- बह स्मान करता है, वह डूबती है. वह मजन करतो है ॥ ४-६०१ ।
पुजेरारोल-बमालौ ॥ ४-.१०२॥
पुञ्जरेताबादेशी घा भवतः ॥ आरोलइ ! धमालइ । पुजइ ॥
अर्थ:--'एकन्न करना, इकट्ठा करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'पुरु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से दो(धातु) रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। (१)प्रारोल और (षमाल । विकल्प पक्ष होने से 'पुज' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:--पुंजयति (१)आरोलड़, (२)वमालइ और (३)पुंजश्-वह एकत्र करना है, वह इकट्ठा करती है ॥४-१०२ ।।.
लस्जे महः ॥४-१०३ ॥ लज्जते जीह इत्यादेशो वा भवति ॥ जीहइ । लज्जइ ।।
अर्थ:-'लज्जा करना, शरमाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'लाज' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'जीह' (धातु) रूप फी श्रादेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'लज' को भी प्राप्ति होगी। जैसे--लखति-जी अथवा लज्जाइ - वह लजा करती है. वह शरमातो है । ४-१.३॥
तिजेरोसुक्कः ॥४-१०४ ॥ तिजेरोसुक्क इत्यादेशो वा भवति ।। ओपुक्कइ । तेषणं ।।