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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * meros...00000restmercentrepreneursesort000sesortssaardd0000000m
बञ्चर्वेहत्र--बेलव-जूर बो मच्छाः ॥४-६३॥
बञ्चरते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ।। वेहवइ । बेलवई । जूरबह । उमच्छइ । वञ्चइ ।।
अर्थ:-'ठामा' 'अथक संस्कृत-धातु पञ्च का स्थान पर प्राकृत- भाषा में विकल्प से चार धातु की आदेश प्रानि होती है। 'यो कि कम से इस प्रकार है-(१)बहर, (वलय, (३)जुरष और उगच्छ । रूपान्तर 'वञ्च' भी होगी । उक्त पाँचों धातु-रूपों के उदाहरमा इस प्रकार है:-कञ्चतिः (१)वेहषद, (१)बेलवा, (३) जूरखइ, (४)उ मच्छइ अोर ५)वर-वह ठगना है ॥४-१३ ।
रचेरुग्गहावह-विडविड्डाः ॥ ४-६४ ॥ रातोरते त्रय श्रादेशा वा भवन्ति ॥ उग्गहइ । अवहह । विडनिड्डइ । स्यइ ।
अर्थः-'निर्माण करना, बनाना' अर्थक संस्कृत धातु 'र' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प सनीन (धातु) रूपों की यादेश प्राप्ति होती है । जो कि म सं इस प्रकार है:-(१) लम्गह, (२) अयह
और (३) विवि । वैकल्पिक पक्ष होने से 'रय' भी होगा । उक्त चारों धातु रूपों के उदाहरण कम से इस प्रकार हैं:--रचयति = [१] उग्गहए, [२] अशहद, 3 विडथिक्ष और [४] रयह बह निर्माण करता हैवह रचना है अथवा वह बनाती है. ।। ४-६४ ।।
समारवेस्वहस्थ-सारव-समार केलायाः ॥४-६ ॥
समारोतेचरवार श्रादेशा वा भवन्ति ।। उवहत्थइ । सारवह । समारइ । केलायइ । समारय ।।
अर्थ:--'रचना-बनाना' अर्थक संस्कृत 'ममारध' के स्थान पर प्राकृत भाषा मे विकल्प से चार धातु (रूपों) की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि का से इस प्रकार है:-(६) बहत्य, (२) सारव, (३) ममार और (४) केलाय ।
वैकल्पिक पक्ष होने से 'समा + रच' के स्थान पर समारय' भी होगा । उदाहरण इस प्रकार हैं:-- समारचप्रति = (१) उनहत्थर, (२) सारवह, (३) समारइ, (४) केलायद ओर (१) समार ग्रह यह रचता है-वह बनाती है ॥ ४-६५ ॥
सिचे सिञ्च-सिम्पों ॥ ४-६६ ॥