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%23 प्राकृत व्याकरण
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सिञ्चतेरेसाबादेशी वा भयतः ।। सिचइ । सिम्पइ । सेश्चात् ।।
अर्थ:--'सींचना' अर्थक संस्कृत धातु 'सिच' के स्थान पर विकल्प से प्राकृत भाषा में सिञ्च और सिम्पऐसे दो (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है । पक्षान्तर में 'सिच' का 'सेअ' भी होगा। उदाहरण इस प्रकार हैं:-शिवलि 3(२) सिवइ, (२) सिम्मा और ३) सेप्रङ्क वह सींचता है अथवा सींचती है।। ४-६६ ॥
प्रच्छः पुच्छः ॥ ४-६७ ॥ पृच्छेः पुच्छादेशो भवति ॥ पुच्छ ।
अर्थ:--'पूछना या प्रश्न का मारा जादु प्रज' को स्थान पर प्राकृत भाषा में 'पुत्रन' (धातु) रूप को श्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे-पृच्छति = पुच्छह वह पूछती है अथवा वह प्रश्न करता है।। ४-६७ ।।
गर्जेषुकः ॥ ४-६८ ॥ गर्जते बुक इत्यादेशो वा भवति ॥ बुक्कई । गज्ज ।
अर्थ:--'गर्जन करना अथवा गरजना' अर्थक संस्कृत धातु 'ग' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प सं 'बुक' (धातु) रूप की पादेश प्राप्ति होती है । पक्षान्तर में गज्ज' की प्राप्ति भी होगी। जैसे-जति बुझाइ अथवा गजह यह गर्जन करता है अथवा वह गरजता है: ४.६८ ||
वृषे ढिकः || ४-६६ ॥ वृष-कर्तृकस्य गर्जेदिक इत्यादेशो वा भवति ।। हिकइ । वृषभो गर्जति ॥
अर्थ:-बैल-साएछ गर्जना करना है। इस अर्थ वाली गर्जना अर्थक धातु के लिये प्राकृत भाषा में विकरूप से दिक' (धातु) रूप की धादेश प्राप्ति होती है। जैसे-वृषभो गीत = (टसहो, ढिक्का - बैल बाजना करता है। प्राकृत रूपान्तर महाराज'ऐसा भी होगा ।।४।।
राजेरम्घ-छज्ज-सह-रीर-रेहाः ॥ ५-१०० ॥ राजेरते पञ्चादेशा वा भवन्ति । अग्घई । छज्जइ । सहह । रीरइ । रेहइ । रायई ।।
अर्थः-'शोमना, विराजना, चमकना' अर्थक संस्कृत-धातु 'राज' के यान पर प्राइसभाषा में विकल्प से पांच (धातु)-रूपों की प्रदेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार है: