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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * -000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000001
निष्पतन धिपयस्य श्राच्छोटन विषपस्य च कगो णीलुच्छ इत्यादेशो भवति वा ॥ णीलुन्छ । निष्पतति । श्राच्छोटयति वा ।।
अर्थ:--गिरने अथवा कूछने बिषयक संस्कृत धातु 'कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'णीलुञ्छ' धातु को आदेश प्राप्ति होती है । जैसे-निष्पत्ततिणीलच्छा-वह गिरता है और आच्छोटयति = णीलुन्छह-त्रा कूदता है। पक्षान्तर में णिप्पडइ और आछोडइ भी होगा || ४-७१ ।।
सुरे कम्भः ॥४-७२ ॥ क्षुर विषयस्य कृगः कम्म इत्यादेशो वा भवति ।। कम्मइ । क्षरं करोतीत्यर्थः ।।
अर्थ:-हजामत करने अर्थक 'कृ' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प में कम्म' धातु की आदेश-प्राप्ति होती है। जैसे-शुरं करोति = कम्मइ = वह हजामत कराता है । पक्षान्तर में 'खरं करेई' ऐसा भी होगा ।। ४-७२ ।।
चाटौ गुललः ।। 8-७३ ॥ चाटु विषयस्य कुगा गुलल इत्यादेशो वा भवति ॥ गुललइ । घाट करोतीत्यर्थः ॥
अर्थ:-'सुशामद करना-चाटुकानी करना' विषयक 'कृ' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'गुलल' धातु को श्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे- चाटुकरोति = गुललइ-वह खुशामद करता है-वह चाटुकारी करता है। पक्षान्तर में 'चाडुकरे' ऐसा भी होगा ॥४-७३ ॥
स्मरेभैर-कूर-भर-भल-लढ-बिम्हर-सुमर-पयर-पम्हुहाः ॥ ४-७४ ॥
स्मरेते नवदेशा का भवन्ति । झरइ । सूरदा भरह । भलइ । लढइ । विम्इरह । सुमरइ । पयरइ । पम्ह इ । सरह)
अर्थ:-'स्मरण करना-याद करना' 'अर्थक संस्कृत धातु 'स्मर' के स्थान पर प्राकृत भाषा में : विकल्प से नव धातु रूपों को श्रादेश प्रानि होना है। वे क्रम से इस प्रकार हैं:-(१) झर. (२) झूर, {३) भर, (४) भल, (५) रूढ (१) विम्हर, (७) सुमर, () पयर और (6) पहुह 1 वैकल्पिक पक्ष होने से पकान्तर में 'सार' के स्थान पर 'सर' रूप की भो प्राप्ति होगी। इनके उदाहरणं कम से इस प्रकार है:
स्मरति - (१) झरह (1) अरह ) भरइ, ६) भलइ, (५) लडड़, (६.).विम्हरड़, (७) सुमरह, (८) पयरइ, (२) पम्नुहह और (१०) सरह = वह स्मरणा करता है अथवा याद करता है; यों दस हो क्रियापनों का एक ही श्री