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* प्राकृत व्याकरण 2
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इसी प्रकार से 'अवलम्बन करना अथवा सहारा लेना' इस अर्थक संस्कृत-धातुश्रवष्टम्भपूर्वक क' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'संदाण' धातु को मादेश प्राप्ति होती है। जैसे- अषष्टम्म करोत-संढाणा - वह अवलम्बन करता है अथवा वह सहारा लेता है।
पक्षान्तर में निष्टम्में करोति का प्राकृत रूपान्तर 'निट करेई' ऐसा भी होगा तथा 'अषष्टम्भ करोति' का प्राकृत रूपान्तर 'आदरभं करेड' भी होगा ।। ४-६७ ।।
श्रमे वायम्फः ॥४-६८ ॥ श्रमविषयस्य गो वायम्फ इत्यादेशो वा भवति ॥ वायम्फइ । श्रमं करोति ॥
अर्थ:-'श्रम विषयक कृ धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'वावम्फ' धातु को आदेश प्राप्ति होतो है। जैसे-श्रम करोति वायम्फड़-वह परिश्रम करता है । पक्षान्तर में 'श्रमं करोति' का 'सम फरेई' भी होगा। ४-६८ ।।
मन्युनौष्ठमालिन्ये णिवोलः ॥४-६६ ॥ मन्युना करणेन यदोष्ठमालिन्यं तद्विषयस्य कगो णिच्योल इत्यादेशो वा भवति ॥ णियोलइ । मन्युना प्रोष्ठं मलिनं करोति ।।
अर्थ:--'कोष के कारण से होठ को मलिन करने' विषयक संस्कृत धात 'कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'सिम्बोल' धातु को आदेश प्राप्त होती है। जले-'मन्युना आठ मलिनं करोति = मिधीला - कह श्रोध से होठ को मलिन करती है अथवा करता है । पक्षान्तर में 'मन्नुणा ओदठ मलिणे करेइ' भी होगा।
शैथिल्य लम्बने पयल्लः ।।४-७० ॥
शैथिल्य विषयस्य लम्बन विषयस्य च कमः पयलः इत्पादेशो पा भवति ॥ पयत्नइ । शिथिली भवति, लम्बते वा !!
अर्थः-'शिथिलता करना' अथवा "वीला होना-लटकना" इस विषयक संस्कृत धातु 'क' के स्थान पर प्राकृत भाषा में निरूप से 'पमल्ल' धातु की आदेश प्राप्ति होती है । जैसे-शिथिली भपात (अथवा) लम्बते - पयल्लइ बह शिथिलता करता है अथवा वह डोलाई करता है-वह ढला होता है। पक्षास्तर में सिाढलइ अथया) लम्बे होगा॥ ४-७० ॥
निष्पाताच्छोटे णीलुन्छः ॥४-७१॥