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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 18++++++++++++++++++$$$$$1$$1$$$$$$$$$$$$%%%%%%%%%%%%%%} $$$$$$$$$4=; हवइ । हवन्ति ।। पक्षे । भवइ । परिहीण विहवो। भविउ । पभवइ । परिभवइ । संभवई ॥ क्वचिदन्यदपि । उम्भुप्रइ । भत्तं ।।।
___ अर्थ:-होना' अर्थक संस्कृत-धातु म = भव' के स्थान पर प्राकृत-पाषा में विकल्प से हो. हुच और हव' ऐसे तीन धातु--रूपों की प्रादेश पानि होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'भ-भव' कामव' रूपान्तर भी होगा जैसः भवति = होइ, हुघा और हवाई अथवा भयावह होता है । बहुवचन के उदाहरण इस पकार है:--भवन्ति - हन्ति, हुवन्ति श्रीर हयन्ति आश्रया भवन्ति वे होते हैं।
कुछ प्रकीर्ण रु उदाहरण वृत्ति में इस प्रकार दिये गये हैं:
(१) परिहीन -विभवः - परिहीण विहको = घन-यभय से हीन हुआ। इस उदाहरण में 'भव' के स्थान पर 'हव' रूप को प्रदर्शित किया गया है।
(२) भवितुम = भविडं = होने के लिये । इस हेत्वर्थ-कृदन्त के रूप में संस्कुत-धातु-रूप 'भव' फे स्थान पर प्राकृत-भाषा में भी भव' रूप को ही प्रदर्शित किया गया है।
(३) प्रभवति = पभवन - वह समर्थ होता है, वह पटुंचता है अथवा वह उत्पन्न होता है । इस वर्तमान-कालिक क्रियापद में संस्कृत धातु रूप 'प्रभव के स्थान पर प्राकृत भाषा में भी + भव' का प्रयोग किया गया है।
(४) परिभवति - परिभषद - वह पराजय करता है अथवा तिरस्कार करता है । यहाँ पर भी 'भव' के स्थान पर 'भव' रूप का ही प्रदर्शन किया गया है।
संभवति-संभवद (अ) वह उन्म होता है. (ब) संभावना होती है अथवा (स) ७३ ट संशय होता है । इस उदाहरण में भी भव' के स्थान पर भव' को ही प्राप्नेि हुई है।
कहीं कहीं पर 'भूम' के स्थान पर उपरोक्त रूपों के अतिरिक्त अन्य रूप भी देखे जाते हैं। जैस-उद्भवति = उम्भुइ-वह उत्पन्न होता है । इस उदाहरण में 'भूभत्र' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'भुत्र' कब का प्रयोग प्रशित किया गया है। ऐसे विभिन्न तथा अनियमित रूओं के संबंध में 'बहुल' सूत्र की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये।
कभी कभी सर्वथा अनियमित रूप भी 'भू-भव' के प्राकृत भाषा में देखे जाते हैं। जैसे-भूतम् = मत्त' = उत्पन्न हुश्या । यह कमणि भूतकृदन्त का रूप है । एसे रूपों की प्राप्ति 'श्रार्षम्' सूत्र से सम्बन्धित है; ऐसा समझना चाहिये ॥४ ॥
अविति हुः ॥ ४-६१ ।