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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * moranrotesterstoorerroronsonanews000000000modeokreerossessino.0000
__ मूल सूत्र में 'चकार' दिया हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि कभी कभी विकण' धातु में रहे हुए 'कि' को द्वित्र 1' की प्रामि होकर 'शकार' का लोप भी नहीं होता है। जैसे--विक्रीणाति = विविकणइ = यह बचता है ॥४-५२ ।।
भियो भा-बीही ॥ ४-५३ ॥ बिभेतैरतावादेशौ भवतः॥भाइ । भाइ । मीहइ । चीहिनं ।। बहुलाधिकारान् भीओ ॥
अर्थ:-डाने अर्थक संस्कृत धातु 'भी' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'भा और बाह' की श्रादेश प्राग्नि होती है । जैसे-भयति-भाइवह डरता है; विभति-बीड-वह उरता है । भील - भाइभं और पीहिन्डरा हुश्रा अथवा उरे हुए को ।
बहुलं सूत्र के अधिकार से 'भीतः' विशेषण का रूपान्तर भीओ भी होता है । भीश्री का अर्थ 'डरा हुया' ऐसा है ॥ ४-५३ ॥
आलीङोल्ली ॥ ४-५४ ॥ झालीयतेः अली इत्यादेशो भवति ।। अनियइ । अलीणो ।
अर्थ:-'या' उपससे सहित 'ली' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'अल्ली' रूप की आदेश प्राप्ति होती है । जसे- आयितेभलियइ-वह पाता है, वह प्रवेश करता है, वह पालिङ्गन करता है। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:-आलम: अल्लीणो = माया हुश्रा, प्रवेश किया हुश्रा, थोडासा झुका हुश्रा ॥४-५ ॥
निलीङोर्णिलीअ-णिलुक-णिरिग्ध-तुक्क-लिक-ल्हिकाः ॥ ४-५५ ॥
निलीड एते पडादेशा था भवन्ति । णिलीआइ । पिलुकाइ । णिरिन्धह । लुकइ । लिका । निहका । निलिज्जई ।।
अर्थ:--मेटना अथवा जोड़ना अर्थ में प्रयुक्त होने वाली संस्कृत धातु नि + ली-निली' के स्थान पर प्राकृत भाषा में बिवल्प से छह धासु षों की आदेश पारित होती है। वे कम से इस प्रकार हैं:(१) गिलीम, (२) शिलुका, (३) णिरिग्ध, (४) लुका. (५) लिया और १६) सिहक ।
वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'निली' के स्थान पर निलिज' रूप की भी बानि होगी । सभी का उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:-निलीयते -णि लोअइ, णिलुका, णिरिधर, लकर, लिकर लिहका अथषा निलिजाइ = वह भेटता है, यह मिलाप करता है। ४-५५ ।।