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* प्राकृत व्याकरण *
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अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय ण्यन्त सहित संस्क्रुप धातु र के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'संघ' की आदेश प्राप्ति होती है । पत्तान्तर में रख की भी प्रानि होगी। जैसे रखजयति-राधेड़ अथवा रजइ = वह रंग लगाता है, यह खुशी करता है ।। ४-५६ ।।
घटे परिवाडः ॥४-५०॥
घटे पर्यन्तस्यं परिवाड इत्यादेशो वा भवति ॥ परिवाइं । घडेइ ।। अधी... सार्थक
प्र ति हेत संत पापा के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से परिवार की प्रादेश प्राप्ति होती है । पज्ञान्तर में धन की प्राप्ति भी होगी । जैसे:--घटयति = परिपाडेइ अथवा घडेइ = वह निर्माण करवाता है । वह रचाता है ।। ४-५० ॥
वेष्टेः परिपालः ॥४-५१॥
वेष्ट पर्यन्तस्य परिपाल इत्यादेशो वा भवति । परिमालेइ । वढेइ !!
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अर्थः --प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित संस्कृत-धातु 'बेष्ट ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'परिश्राल' की आदश प्राप्ति होता है पक्षान्तर में वेद की भी प्राप्ति होगी । जैसे:-पेष्टयति = सरिआलइ अथवा वेढेइ = वह लपेटता है अथवा लपेटाता है । ४-५१ ॥
क्रियः किरणो वस्तु के च ॥ ४-५२ ॥
णेरिति नियनम् । कोणतेः किण इत्यादेशो भवति । वेः परस्य तु द्विरुक्तः केश्चकारा त्किणव भवति ॥ किपड़ । विकइ । सिक्किम ।
अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय यन्त संबंधी प्रक्रिया एवं इससे संबंधित प्रादेशमाप्ति की यहाँ से समाप्ति हो गई है। अब कंवल नामान्य रूप से होने वाला आदेश-प्राप्ति का ही वर्णन किया जायेगा।
खरीदने अर्थ: संस्कृत धातु की (कोणा) के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'किण' आदेश मारिस होती है। जैसे:-क्रीणाति अधवा कीगीते - किणइ = बह खरोदता है।
जिस समय में को धातु के साथ में वि' उपमर्ग जुड़ा हुआ होता है तब प्राकृत-भाषा में श्रादेश प्राप्त किया धातु में रहे हुए 'कि' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति हो जाती है। जैसे:-विकीणाति =पिकड़ - बह बोचला है ।
व न में रहे कि द्वित्व के की प्राप्ति होने पर विकिए' धातु में रहे. हुप 'कार' का लोप हो जाता है।