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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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420969494400
प्रकाशे वः || ४--४५ ॥
प्रकाशे पर्यन्तस्य च इत्यादेशो वा भवति । शुब्ध | पयासे ||
अर्थ:-- प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त साहेत संस्कृत धातु प्रकाश के स्थान पर प्राकृत भाषा में अ की प्राप्ति विकल्प से होती हैं। पक्षान्तर में 'क्याम' रूप को भी प्राप्ति होगी जैसे :- प्रकाशयति = शुध्ष अथत्रा पयासेइ वह प्रकाश करवाता है ।४-४५ ।।
कम्पेच्छिलः ॥ ४-४६ ॥
कम् पर्यन्तस्य विच्छोल इत्यादेशो वा भवति । चिच्छोल । कम्पेड़ ||
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय स्यन्त सहित संस्कृत धातु कम्प के स्थान पर प्राकृत भाषा में त्रिकल्प से 'विकल' की प्राप्ति होती है। वैकल्पि पक्ष होने से कम्प की भी प्राप्ति होगी । जैसे:- कम्पयति = विच्छी अथवा कम्पइ = वह कंपाता है, वह धुजवाता है ।। ४.४६ ।।
आरोपे लः ॥ ४-४७ ॥
रुहे एर्यन्तस्य वल इत्यादेशो वा भवति ।। बलइ | आरोवेद्द ||
अर्थ:-- प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित संस्कृत धातु बारुद के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'बल' की प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में आरोव को भी प्राप्ति होगी। जैसे:- आरोहयति = वङ्ग अथवा भres वह चढवाता है । । ४-५७ ॥
दोलेरोलः ॥ ४-४८ ॥
दुलेः स्त्रार्थे यन्तस्य रङ्खोल इत्यादेशो वा भवति । रङ्गोलह । दोलई ||
अर्थः- स्वार्थ रूप में प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित संस्कृत धातु दुल् के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'रोल' की आदेश प्राप्ति होती है। पचान्तर में 'दोल' की भी प्राप्ति होगी। जैसे— दोलयति = रबखोल अथवा दोलइ वह हिलाता है अथवा वह भुलाता है ॥ ४-४८ ॥
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रञ्जरात्रः ॥ ४-४६ ॥
रख पर्यन्तस्य राव इत्यादेशो वा भवति ॥ राधे । रजे६ ॥
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