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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
'तड़ा' संस्कृत का अव्यय है। इसका प्राकृत-( अप भ्रंश) में 'नो' होता है। इसमें सूत्र संख्या ४४१७ से मूल संस्कृत अव्यय 'तदा' के स्थान पर प्राकृत-( अपभ्रंश ) में 'तो' सिद्ध हो जाता है।
राहु-परिभवं संस्कृत के द्वितीया विभक्ति के एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप गहु-परिहवं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १२८७ से 'भ' वर्ण के स्थान पर 'ह' वण की प्रादेश-प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन के अर्थ में म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर पूर्ववर्ण 'व' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकन-पद राह परिहर्ष सिद्ध हो जाता है।
'से' सर्वनाम की सिद्धि सूत्र-संख्या 5-८१ में की गई है।
जेतुः (अथवा जयतः ) संस्कृत के षष्टी विभक्ति के एकवचन का { अथवा तः प्रत्ययांत अव्ययास्मक पद का ) रूप है । इसका प्राकृत में क्रियातिपत्ति के अर्थ में षष्ठी-विभक्तिपूर्वक जिअन्तम रूप होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२७.७ से संस्कृत विशेषणात्मक पद जित' में स्थित हलन्त '' का लाप; १.१८० संछियातिपत्ति के अर्थ में प्राकृत में प्राप्तांग 'जिम' में 'न्त' प्रत्यय की प्राप्ति और ३.१० से छियातिपत्ति के अर्थ में प्राप्तांग 'जिअन्त' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन के अर्थ में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इम्' के स्थान पर प्राकृत में 'स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'जिअन्तस्स' सिद्ध हो जाता है। ३.३. ।।
शत्रानशः ॥३-१८१॥
शत् श्रानश इत्येतयोः प्रत्येक न्त माण इत्येतावादेशी भवतः ॥ शत् : सन्तो हसमाणो || पानश । वेवन्तो देवमाणो ॥
अर्थः कृदन्त चार प्रकार के होते हैं जिनके नाम इस प्रकार है:-हेवर्थ कृदन्त, संबन्धक भूत कृदन्त, कर्मणि भूत कृदन्त और वर्तमान कृदन्त, इसमें से तीन कृवन्तों के सम्बन्ध में पूर्व में दूसरे और तीसरे पादों में यथा स्थान पर वर्णन किया जा चुका है। चौथे वर्तमान कृदन्त का वर्णन इसमें किया जाता है । वर्तमान कृदन्त में प्राप्त सबै प संज्ञा जैसे ही माने जाते हैं। इसलिये इनमें सोनों प्रकार के लिंगों का सद्भाव माना जाता है और संज्ञाओं के समान ही विभक्ति बोधक प्रत्ययों की भी इनम संयोजना की जाती है । सस्कृत में वर्तमान-कृदन्त के निर्माणार्थ धातु में सर्व प्रथम दो प्रकार के प्रत्यय लगाये जाते हैं, जो कि इस प्रकार हैं:-(१) शत-अत और (२) शानच-पान अथवा मान । ये प्रयय ऐसे अवसर पर होते हैं, जबकि दो क्रियाएँ साथ साथ में होती. हों। जैसे:-तिष्ठन् खादतिवह बैठा हुश्रा खाता है। हसन जल्पति-वह हंसता हुआ बोलता है । कम्पमानः गच्छतिबह कांपत्ता हुश्रा जाता है। इत्यादि।
प्राकृत भाषा में वर्तमान कृदन्त भाव का निर्माण करना हो तो धातुओं में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'शत और श्रानश में से प्रत्येक के स्थान पर 'न्स और माण' दोनों ही प्रत्ययों को आदेश-प्राप्ति