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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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अर्थः - संस्कृत धातु ग्नो के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'अम्भुत' रूप की प्रदेश प्राप्ति होती है | पक्षान्तर में 'रहा' रूप भी होगा जैसे-स्नाति = अब्भुत्तइ और हाइ=बह स्नान करता है ।
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समः स्त्यः खाः ॥ ४--१५ ॥
संपूर्वस्य स्त्यायतेः खा इत्यादेशो भवति || संखाह | संखायं ॥
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अर्थ:-सम् उपसर्ग के साथ संस्कृत धातु 'ये स्त्याय' स्थान पर प्राकृत में 'खा' रूप की प्रदेश प्राप्ति होती है। जैसे - संस्याचार्त संखाइ = वह घेरता है, वह फैलाता है । वह सर्व प्रकार से चिन्तन करता है। संस्त्यनम् = संखायं = ध्यान करना, चिन्तन करना ।। ४- १५ ।।
स्थष्ठा थक्क चिह्न - निरप्पाः ॥ ४-१६ ।।
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विछतेरेते नाना
देवा सति || लाइ | ठाइ । ठा । पट्टि । उडिओ | पट्टाविओो । उट्ठात्रियो । थक | fage | चिऊण । निरपइ । बहुलाधिकारात् कचिन भवति । धियं । था । पत्थिओ । उत्थिश्रो । थाऊण ॥
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अर्थ:- ठहरने अर्थ वाली संस्कृत धातु 'स्थातिष्ठ' के स्थान पर प्राकृत में चार आदेश रूपों की प्राप्ति होती है। वे इस प्रकार है: - (१) ठा, (२) थक्क (३) चिठ्ठ और (४) निरप्प | उदाहरण इस प्रकार है: - तिष्ठति = ठाह, ठाअइ, थक्कड़, [ चिces निरप्पs = वह ठहरता है। अन्य उदाहरण मी इस प्रकार हैं: - ( १ ) स्थानम् = ठाणं = स्थान । (२) प्रस्थितः = पट्टिश्रो = जाता हुआ; (३) उत्थितः = उट्टी उठता हुआ अथवा उठा हुआ (४) प्रस्थापितः = पट्टाविश्र = रखा हुआ अथवा रखता हुआ; (५) उत्थापित: बठ्ठाविओो उठाया हुआ, स्थित्वा = चिट्ठिऊ = ठहर करके ।
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बहुलं सूत्र के अधिकार से कहीं कहीं पर उक्त आदेश प्राप्त नहीं भी होती है, जैसे कि स्थित म थिअं ठहरा हुआ, रखा हुआ | स्थान = थार्ण = स्थान पस्थितः = पत्थिओ प्रस्थान किया हुआ, जाता हुआ । उत्थितः = उस्थिओ उठा हुआ, और स्थित्वा = थाऊण = ठहर करके । यो सर्वत्र श्रादेश रहित स्थिति को मो समझ लेना चाहिये ||४ १६।।
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उदष्ठ - कुक्कुरौ ॥४--१७|
उद: परस्य तिष्ठतेः ठ कुक्कुर इत्यादेशौ भवतः ॥ उड! उक करई ॥
अर्थः :- उत् उपसर्गसहित होने पर स्थातिष्ठ धातु के स्थान पर 'ठ' और 'कुक्कुर' धातु-रूपों की यादेश प्राप्ति होती है। जैसे:- उतारी हह और उक्कुक्कुर = वह उठता है ॥४-१७॥
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