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* प्राकृत व्याकरण * .00000000000rsorrtoortootostosroresosorrorosorrrrrrrrrrror.00+0000rn
प्रकार हैं:-दर्शयति - दापड़, देसह और दक्खषद - यह बतलाता है अथवा वह प्रदर्शित कराता है। पक्षान्तर में दरिसई रूप होता है ।। ४-३२ ।।
उद्घटेरुग्गः ॥४-३३ ।। उत्पूर्वस्य घटेर्यन्तस्य उग्ग इत्यादेशो वा भवति ॥ उग्गइ ! उग्घाडइ ।।
अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित तथा उत्त उपसर्ग महित संस्कृत धानु घट' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकला से 'उग्ग' ऐने धातु रूप को आदेश प्रानि होती है। जैसे:-उद्घाटयति - उगई = वह प्रारम्भ कराता है अथवा वह खुला कराता है । पक्षान्तरे उरबाड रूप भी होता है ।।४-३६।।
स्पृहः सिंहः ॥४-३४ ॥ स्ट हो एपन्तस्य सिह इत्यादेशो भवति ॥ सिहइ ।। __ अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित संस्कृत-धातु 'स्पृह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में नित्य रूप से 'सिंह' धातु-रूप की आदेश प्राति होती है । जैसे:-सुहयति = सिहावह चाहना-इलझा कराता है ।। ४-३४ ॥
संभावरासंघः ॥४-३५ ॥. संभावयतेरासङ्घ इत्य देशो व भवति ॥ आसङ्घइ । संभावइ ।
अर्थ:-संस्कृत-धातु ममावय के स्थान पर प्राकृत--भाषा में विकल्प से 'अाम ऐमे धातुरूप की आदेश प्रामि होती है। पशान्तर में समावय के स्थान पर संभाव रूप भी होगा । जैसेसंभावयति = आसाइ, पक्षान्तर में संभाषन - यह संभावना कराता है ।। ५-३५ ।।
" उन्नमरुत्थंघोल्लाल-गुलु गुलोप्पेलाः ॥४-३६ ॥
उत्पूर्वस्य नमेण्यन्तस्य एते चत्वार आदेशाचा भवन्ति ॥ उपचार । उल्लालइ । गुलुगुञ्छइ ! उप्पेला । उन्नामइ ।।
अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय एयरत सहित तथा सम् उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु नम् के स्थान पर प्राकृत-भाषा में वैकल्पिक रूप से चार धातुओं का आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है:-(१) उत्थंध, (२) उल्लाल (३) गुलुगुच्छ और (४) उपपेज । पक्षान्तर में 'उमाम' मा की भी प्राप्ति होगी । उदाहरण इस प्रकार:-उन्नामयति - उस्था , उल्लालइ, गुलगुञ्छा , उप्पल और उन्नामइ, यह या उदाता है। वह अगर उठाता है ।। ४-३६ ॥