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प्राकृत व्याकरण .sretreakistrationwidootkirsasorrowersitosdhoobsitarmotise
दुइटै रोइर: -.१५ तुलेण्यन्तस्य श्रोहाम इत्याविशी वा भवति ।। श्रोहामइ । सुलई ॥
अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय 'एयन्त सहित संस्कृत धातु तु न के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'मोहाम' धातु रूप को आदेश प्राप्ति हुआ करता है । जैसे-तुल यति = मोहामइ = वह लोल कराता है। प्रक्षान्तरं में तुलई' = वह लोल कराता है ।। ४-२६ ।।
विरिचेरोलुण्डोल्लुण्ड-पल्हत्थाः ॥ ४-२६ ॥ विरचयतेपर्यन्तस्य भोलुण्डादयस्त्रय आदेशा वा भवन्ति ।। मोलुण्डइ । उल्लु एडइ । पहिस्थइ । विरेड् ॥
अर्थ:--प्रेरणार्थक प्रत्यय यन्त सहित संस्कृत धातु विर' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन पातु आदेश हुमा करते हैं; जोकि कम से इस प्रकार हैं:-18) श्रोसुण्ड, (२) मुण्ड और (३) पनहरथ । पंज्ञान्तर में विरेअ रूप भी होगा । सधारण यों है:--विरेण्यति = ओलुइ, उसलुएडइ, पहत्या-वह बाहिर निकलकाता है; पहं विरेचन (झराना पकाना) करता है। पातर में विरचयत्ति का बिरेअाह रूप भी बनेगा।।४-२६ ।।
तडेराहोड-विहोडौ ॥ ४-२७ ॥ सडेयन्तस्य एतावादेशौ वा भवतः ।। आहोडइ । बिहोडई । पन्चे । ताडे ।
अर्थः प्रेरणार्थक प्रत्यय एवन्त' सहित संस्कृत धापू त के स्थान पर प्राकृत में 'आहोड' और 'विहाँट मी दो धातुओं की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'ताड' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैमे:- ताडयति = आहोडा और बिहोडबह मार पीट कराता है, वह ताड़ना कराता है । पक्षान्तर में ताडेइ' कर होगा ।। ४.२७ ।।
मिने साल-मेलबो ॥४-२८॥ मिश्रयतेपर्यन्तस्य धीसाल मेलव इत्यादेशौ वा भवतः ।। वीसालइ ! मेलवइ । मिस्सा।
अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय 'रबन्त' सहित संस्कृत धातु 'मित्र' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से दो धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। ये हैं (१) कोसाल और मे लव । पक्षास्तर में 'मिस' रूप भी होगा । उदाइरल. को है।-मिश्रपति - पीसाला और मेलपद = बह मेल मिलाप कराता है, यह भेल संभेल कराता है । पक्षान्त में मिस्सह रूप.ोता है। ४-२८ ।।