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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
उद्धले गुगठः ॥४-२१ ॥
उद्ध लेण्यन्तस्य गुण्ठ इत्यादेशो वा भवति ।। गुण्ठइ । पो । उलू लेइ ॥
अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय 'एयन्त' सहित तथा उद् उपसर्ग सहित संस्कृत धातु धूल' के स्थान पर प्राकृत में 'गुण्ठ' घातुरूप को विकल्प से आदेश प्राप्ति होता है । पतान्तर में उद्धृत रूप भा बनेगा। जैसे:-उधूल यति - गुण्ठ अथवा उनले। - वह इंकाता है वह व्याप्त कराता है, वह श्राच्छादित कराता है ।। ४-२६ ॥
भ्रमेस्तालिगण्ट-तमाडौं ॥४-३०॥ भ्रमयते पर्यन्तस्य तालिअण्ट तमाड इत्यादेशौ वा भवतः ॥ तालिअण्टइ । तमाडइ । भामेइ । भमाडेइ । भमावेइ ॥
अर्थ:-प्रेरणार्थक ण्यन्त प्रत्यय सहित संकृत धातु भ्रम् के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकरूप से 'सालिअण्ट और तमास' ऐसे दो धातु रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। जैसे: भ्रमयात = तालिमपटइ और तमाडइ = वह घुमाता है । "भामेड़, भमाडेइ, भमावेड" रूप भी होते हैं । ४-३० ॥
नशेर्विउड-नासव-हारव-विप्पगाल-पलावाः ॥४-३१॥
नशेपर्यन्तस्य एते पश्चादेशा वा भवन्ति ।। विउडइ । नासत्रइ । हारवइ । विप्पगालइ । पलाचई । पक्षे । नासह ॥
अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय बन्त सहित संस्कृत धातु नशू के स्थान पर प्राकृत माषा में विकल्प से पांच घातु रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है। ये क्रम से इस प्रकार हैं:-(१) 'वह (२) नासव, (३) हारव, (४) विप्पगाल और (५) पलाव । इनके उदाहरण इस प्रकार हैं:-नाशयति = बिससुइ, नासवइ, हारवइ, विप्पगाला और पलावइ -- यह नाश कराता है। पज्ञान्तर में नासइ भी होगा और इसका अर्थ भी 'वह नाश कराता है' होगा ।। ४-३१ ।।
दृशेर्दाव-दस-दक्खवाः ॥ ४-३२ ॥ दृशेपर्यन्तस्य एते त्रय आदेशा भवन्ति ॥ दायइ । दसइ । दक्खयह ! दरिसइ ।।
मथः--प्रेरणार्थक प्रत्यय एयम्त सहित संस्कृत धातु देश के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकरूप से तीन आदेश होते हैं; के कम से यों हैं:-(१) वाव, (२) देस और (३) दक्खव । इनके उदाहरण इस