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[३४६ ] . प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * merooratorrownservoirrortiorewarrowroornmovimootoobsedoorstern.
इसो सूत्र-सिद्धान्त से संस्कृत शब्द म्यान और [गायन अथवा गान के स्थान पर प्राकृत में 'झाण' और 'माण' शब्दों को,क्रम स प्राप्ति होती है। जैसे-ध्यामम् = झाणम् और गानम्-गाणं । ये दोनों शब्द नपुंसकलिंग होने से इनमें मूत्र संख्या ३-२५ से पथमा विभक्ति क एक वचन में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति हुई है। सूत्र संख्या १-२३ मे प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर कम से झाण और गाण म.पों का मिद्धि हो जाता है। प्र.-६।।.
ज्ञो जाण-मुणौ ॥४-७॥ जाणाते औण मुग : इत्यादेशौ भवतः ॥ जाणइ । मुणइ । बहुलाधिकारात् क्वचित् विकल्पः । जाणिवे । णायं । जाग्गिऊण । णाऊण । जाणयं । गाणं । मणइ इति तु मन्यते ।।
अर्थ:-जानने रूप ज्ञानार्थक धातु 'ज्ञा' के स्थान पर प्राकत में वित्यरूप से 'जाण और मुण' इन दो धातुओं को क्रम से प्रादेस प्राप्ति होती है । जैसे-जानाति = जाण अथवा मुणइवह जानता है। 'बहुलं' सूत्र का सर्वत्र अधिकार होने से कहीं कहीं पर विकल्प से 'ज्ञा' से प्राप्त रुप 'गा' भी देखा जाता है । जैसे:ज्ञातं = जाणिों अथवा गोर्य - जाना हुा । झापा-माणऊण अथवा पाऊण जान करके । कानम्-जाणणे अथवा जाणं-मानना रूप मान । यो वैकल्पिक स्थिति का भी श्याम रखना चाहिये।
प्राकृत में जो 'माइ' रूप देखा जाता है; उसकी प्राप्ति तो 'मानने स्वीकार करने अर्थक संस्कृत धातु 'मन' से हुई है। जैसे-मन्यते = इवाइ मानता है अथवा वह स्वीकार करता है। यो मण धातु को जाय और मुण धातुओं से पृथक हो समझना चाहिये ।। ४-५ ।।
उदो ध्मो धुमा ॥ ४-८॥ उदः परस्य ध्मो धातो धुमा इत्यादेशो भवति । द्धमा ।।
अर्थ:-उद् पसर्ग जुड़ा हुआ है जिसक, ऐसी 'मा' धातु के स्थान पर प्राकृत में 'धुमा' रूप को श्रादेश प्राप्ति होती है जैसे-उधमति - उखुमा - वह प्रदीप्त करता है; व तपाता है ।।४।।
श्रदो धो दहः ॥ ४-६ ॥ श्रदः परस्य दवाते देह इत्यादेशो भवति ॥ सद्दहइ । सदहमाणो जीयो ।।
अर्थ:-श्रत अध्यय के साथ स्मृत धातु 'या' के प्राप्त रूप पवाति' में रहे हुए 'दधा' अश के स्थान पर प्राकृत में दह' रूप की आदेश प्राप्ति होनी है । जैसे-श्रदधाति सहावा अशा करता है, वह विश्वास करता है । अयमान जी-सहमाणो जीवो-अदा करता हुमा मोज मामा-१०।