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[३४४ ] *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # meenroommootrosameroorkestromorrowomarwarroworrowroommom
वृत्ति में प्रादेश-प्राप्त धातुओं को उदाहरण पूर्वक इस प्रकार समझाया गया ई-थयति = वज्जर इ, पज्जर इ, उत्पालई, पिसुगाइ, संघह बोललइ चवइ, जम्पइ. सीसइ और साहइ इन दश ही धातु रूपों का एक ही अर्थ है - वह कहता है। चूंकि यह प्रादेश-विधि वैकल्पिक है अतः पक्षान्तर में कथयति के स्थान पर कहा रूप भी होता है।
प्रश्ना-'उबुक्कइ' इस रूप की प्राप्ति कैसे होती है ?
उत्तरः---बुक्क धातु का अर्थ भाषण करमा होता है न कि कथन करना; इसालये बुक्क धातु को अधिकृत धातु कथ के स्थान पर आदेश-स्थिति की प्राप्ति नहीं होती है । इस घुक्क धातु में 'उत्' उपसर्ग हैं, जो कि 'उ' अथवा 'इ' के रूप में अवस्थित है। इस विवेचन से संस्कृत धातु रूप भाषते के स्थान पर प्राकृत में जरचुरका रूप की प्रादेश-प्राप्ति हुई है। . संस्मत-धातुओं के स्थान पर प्राकृत में उपलब्ध धातु-रूपों को अन्य वैयाकरणों ने 'देशी भाषाओं के धातु-रूपों' की संज्ञा दी है; परन्तु हमने (हेमचन्द्र ने ) तो इन धातु-रूपों को वैकल्पिक रूप से प्रादेश प्राप्त धातु ही मानी हैं, तथा ये प्राकृत भाषा को ही धातुएँ हैं; ऐमा पूर्णतया मान लिया गया है। इसलिये इनमें विविध काल-बोधक प्रत्ययों को तथा आज्ञार्थक आदि सभी लकारों के एवं रुदन्तों के प्रत्ययों को जोड़ना चाहिये। थोड़े से उदाहरण इस प्रकार हैं:
(१) कथितः = जरिओ कहा हुआ; २) कथयित्वा-वजाऊण-कह फरक; (३) कथनम् घजरणं-कहना, कथन करना; (8) कथयन् परन्ती = कहता हुआ; (५) कथायितव्यम् = पजरिअश्व = कहना चाहिये; यों हजारों रूपों की साधना स्वयमेव कर लेनी चाहिये ।
इम धातुओं में प्रत्यय, लोप, प्रागम' आदि की विधियाँ संस्कृत-धातुओं के समान ही जाननी. चाहिये । ४-२॥
दुःखे णिवरः ॥४-३॥ दुःख विषयस्य कथेणिन्दर इत्यादेशो वा भवति ॥ णिब्दरइ दुःखं कथयतीत्यर्थः ।।
अर्थः-'दुःख को कहना, दुःख को प्रकट करना' इस अर्थ में प्राकृत में विकल्प से 'णिवर' इस प्रकार के धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-दुःख कथयति =णिटवरन = वह दुःख को कहता है; ठुःख को प्रकट करता है। ॥४.।।
जुगुप्से झुरण-दु गुच्छ-दुगुञ्छाः ॥४-४॥ जुगुप्सेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ झुणइ । दुगुच्छ। । दुगुञ्छ । पचे। जुगुच्छ । गलोपे । दुउच्छह 1 दुउन्छन् । जुउच्छइ ।।