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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * werstareennerroronstereofestirrrrro0000000+covernot00000setstretorodama हलन्त व्यञ्जन 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; ४-२३६ से आदेश प्राप्त हलन्त व्याजान 'व' म विरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति ३-१८१ से प्राकन में प्राप्तांग 'वे' में वर्तमान-कदन्त के अर्थ में संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'शानच्मान' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'मन और माण' प्रत्ययों की प्राप्ति और ३-२ से वर्तमान-कृदन्त के अर्थ मे प्राप्तांग अकारान्त पुल्लिंग प्राकृतपद ववन्त तथा वेवमाण' में प्रथमा विभक्ति कं एकवचन के अर्थ में हो श्रो' प्रत्यय को प्राप्त होकर प्राकृतपद पन्तों तथा वेषमाणो क्रम से सिख हो जाते है । ३-१८॥
ई च स्त्रियाम् ॥ ३-१८२ ॥ स्त्रियां वर्तमानयोः शबानशीः स्थाने ई चकारात् न्तमाणौ च भवन्ति ।। हसई । हसन्ती । इसमाणी । वेबई । वेबन्ती । वेवमाणी ॥
अर्थः-प्राकृत भाषा में स्त्रीलिंग के अर्थ में वर्तमानकान्त मात्र का निर्माण करना हो तो धातुओं में संस्कृनीय प्राप्तध्य प्रत्यय 'शत-अतु और शान-पान अथवा मान' में से प्रत्येक के स्थान पर 'न्त औरमाण तथा ई' यो तीनों ही प्रत्ययों की आदेश पापि होती है। परन्तु यह ध्यान में रहे कि मालिंग स्थिति के मद्भाव में जैसे संस्कृत में परस्मैपदी धातुओं में उक्त प्रानध्य प्रत्यय 'शत् = अत' के स्थान पर 'ती अथवा न्ती' प्रत्यय को स्वरूप प्राप्ति हो जाती है तथा आत्मनेपदी धातुओं में उक्त प्राप्तव्य प्रत्यय 'शानच-पान अथवा मान' के स्थान पर 'आना अावा माना' प्रत्यय की स्वरूप प्राप्ति होती है, वैसे ही प्राकृत भाषा में भी श्रीलिंग स्थिति के सभात्र में उन रोति से आदेश-प्रात वर्तमान-कदन्तअथक प्राप्तव्य प्रनय 'न्त और माण' के स्थान पर 'न्ता, मा, माणी और माया' प्रत्ययों की स्वरूप प्राप्त हो जाती है । जहाँ पर वर्तमान-कदन्त के अर्थ में स्त्रीनिंग स्थिति के सद्भाव में उक्त प्रामव्य प्रत्यय 'न्ती, ता, माणी और माणा' प्रत्ययों की संयोजना नहीं को जाय। वहाँ पर केवल धातु अंग में दीर्घ 'ई' को संयोजना कर देने मात्र से ही वह पद स्त्रीलिंग वाच होता हुया वतमान कृदन्त- अर्थक पद बन जायगा । इस प्रकार प्राकृत भाषा में स्त्रीलिंग के सद्भाव में वर्तमान-कृदन्त के अर्थ में धातुओं में पौध प्रकार के प्रत्ययों की प्राप्ति हो जाती हैं, जो कि इस प्रकार है:-ई, ती, न्ता, माणा और माणी'। नत्यश्चात वर्तमान कृदन्त के अर्थ में प्रान दीर्घ ईकारान्त अथवा प्राकारान्त स्त्रीलिंग वाचक पदों के सभी विभिक्तियों के रूप पहले वर्णित ईकारान्त और श्राकागन्न बलिंग वाचक मंशा शब्दों के समान ही बन जाया करते हैं। जैसे प्रथमा विमति के एकवचन के अर्थ में क्तमान-कान्स सूचक स्त्रीलिंग वाचक पदों के उदाहरण इस प्रकार हैं:-हसती अथवा हसन्तो - हस है, इसन्ती, ( हसन्सा), इसमाणो (और हसमाणा) = हसती हुई (स्त्रो) दूसरा उदाहरण:--पमानावेवई, वेबन्ती, (वेबन्ता ), चेषमाणी (और वेवमाणाप्ती हुई । यो अन्य विभक्तियों के रूपों को भी वर्तमान-कान्त के सदमाव में स्वय. मेष करूपना कर लेनी चाहिये ।