________________
*प्राकृत व्याकरण *
[ ३०६ ] 00000rseerooterestowserverdisco.orcosterotoroorkero+000000000 काल के अर्थ में प्राप्तांग ‘काहि' में तृतीय पुरुप के एकवचन के अर्थ में मि' प्रत्यय को प्राप्त होकर फाहीम रूप भी सिद्ध हो जाता है।
दास्यामि और दातास्मि संस्कृत के क्रमशः भविष्यन-काल वाचक लट लकार और लुट् लकार के तृतीय पुरुष के पकवचन के रूप हैं। इनके प्राकृत-रूप (समान-रूप से) दाई और दाहिमि होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-१७. से मूल पाकुन-धातु 'दा' में भविष्यत काल के अर्थ में तृतीयपुरुष के एकवचन में पूर्वोक्त सूत्रों में (३-१६६ और ३-१४१ में कथित प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' और 'मि' दोनों के ही स्थान पर 'ई' प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होकर दाहं रूप निद्ध हो जाता है।
द्वितीय-रूप शाहिमि' म सूत्र-सख्या ५-१६६ से प्राप्तांग 'दा' में भविष्यत-काल-सुबक प्राप्तव्य प्रत्यय हि की प्राप्ति और ३-४१ से भविष्यत-काल के अर्थ में प्राप्तांग शाहि' में ततंय पुरुष के एकबचन के अर्थ में FREE को यत्ति होकर
काम जी गिद्ध हो जाता है। ३- ७०|| श्रु-गमि-रुदि-विदि-दृशि-मुचि-वचि-छिदि-भिदि-भुजां सोच्छ गच्छं रोच्छं वैच्छं दच्छं मोच्छ वोच्छं छेच्छं भेच्छं भोच्छं ॥३-१७१ ॥
___ वादीनां धातूनां भविष्यविहितम्यन्तानां शाने सोच्छमित्यादयो निपात्यन्त । सोच्छं। श्रोष्यामि ॥ गच्छं । गमिष्यामि !! संगच्छं। संगस्ये ॥ रोच्छ । रोदिष्यामि ॥ पिद ज्ञाने । वेच्छे । चेदिष्यामि ।। दच्छं। द्रक्ष्यामि ॥ मोच्छ। मोक्ष्यामि । योच्छ । वक्ष्यामि ॥ छेच्छं । छेत्स्यामि ॥ भेच्छं । भेत्स्यामि । भोच्छ । भोक्ष्ये ॥
अर्थः-संस्कृत भाषा को इन दश (अथवा ग्यारह) धातु ओं 'श्र, गम्, (मंगम, रुद्. विद, दृश, मुच, व, छिद्, भिद्, और भुज' के प्राकृत रूपान्तर में भविष्यतू काल बोधक प्रयय के स्थान पर और हनीय पुरुष के एकषचनार्थक प्रत्यय के स्थान पर रूढ़ रूप की प्राप्ति होती है और इसी रूढ़ रूप से ही भविष्यत-काल-वाचक तृतीय पुरुष के एकवचन का अर्थ मकट हो जाता है। इस प्रकार से प्राप्त स्ट रूपों में न तो भविष्यत् काल-बोधक प्रत्यय हि-स्सा-अथवा हा की ही श्रावश्यकता होती है और न ततीय पुरुष के एकवचनार्थक प्रत्यय 'मि' की ही श्रावश्यकता पड़ती है। इस विधि से प्राप्त ये रूप "निपात' कहलाते है । उपरोक्त संस्कृत भाषा की इन दश (अथवा ग्यारह) धातुओं के प्राकृप्त-रूपान्तर में भविष्यत् काल-बोधक अवस्था में पाये जाने वाले रूढ रूप में तृतीय पुरुष के एकवचन के अर्थ मे केवल अनुस्वार की ही प्राप्ति होकर भविष्यत-काल-प्रर्थक तृतीय पुरुष के एकवचन का रूढ रूप बन जाता है। जैसे:-(१) श्रोष्यामि सोच्छ - मैं मुनूंगा; (२) गमिष्यामि = गच्छ-मैं जाऊँगा; (३) संग्रस्ये-संगच्छंमैं स्वीकार करूंगा अथवा मैं मेल रमवू गा; (४) रोविष्यामि = रोच्छ-मैं रोऊँगा; (४) वेदिष्यामि= बेछ-मैं जानूंगा; (6) द्रक्ष्यामि दच्छ-मैं देखू गा; (७) मोक्ष्यामि = मोक्छ - मैं छोडूंगा; () वक्ष्यामि