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पियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * やかでいいからできるのですから दृष्टान्तः-हसाम; इसेम और हस्यास्म-हसामां-हम हमें; हम हँसते रहें और हम हँसने योग्य हो । संस्कृत म इस' धातु परस्मैपदी है, सदनुसार उपरोक्त उदाहरण परमपदी-धातु का प्रदर्शित किया गया है। अब 'वर -जल्दी करमा धातु का उदाहरण दिया जाना है; यह धातु पात्मनेपदीय है । प्राकृत में परस्मैपदी
और प्रात्मनेपदी जैसा ध तु-भेद नहीं पाया जाता है। अतएव संस्कृत में जैसे परस्मैपदी-अर्थक प्रत्यय भिन्न होते हैं और श्रात्मनेपदी-अर्थक प्रत्यय भी भिन्न होते हैं। वैसी पृथकता प्राकृत में नहीं है। इमा तात्पर्य-विशेष का बोध कराने के लिये मस्कृतीय आत्मनेपदी धातु का उदाहरण ग्रंथकार वृत्ति में प्रदान कर रहे हैं। प्रथम पुरुष के बटुवचन का उदा:-त्वरन्तामः लरेरन और वरिन = तुवरन्तुचे शीग्रता करें; वे शीघ्रता करते रहें और वे शभ्रता फरने योग्य हो । द्वितीय पुरुष के बहुवचन का उदाहरण्य-स्वरभ्वमत्वरेश्चम् और त्वरिषश्चम-तुवरह-आप जल्दी करो; आप जल्दी करें और आप जल्दी करने वाले हों तृतीय पुरुप के बहुवचन का उदाहरण:-वरामद; स्वरेमहि और स्त्ररिपीमादि तुबरामो हम शी प्रता करें; हम शीघ्रता करते रहें और हम शीघ्रता करने वाले हो । इस प्रकार प्राकृतभाषा में आज्ञार्थक, विधि-अर्थक और श्राशीषर्थक लकारों के बहुवचन में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीयपुरुष के अर्थ मे मशः समान रूप से न्तु. ह और मो' प्रत्यय का सद्भाव जानना चाहिये । प्राकृत में परस्मैपदी और श्रात्मनेपदी जैसे धातु-भेद का अभाव होने से प्रत्यय-भेद का भी अभाव ही होता है।
हसन्तु, इसेयुः और हस्यासुः संस्कृत के प्रमशः अाज्ञार्थक, विधि-अर्थक और श्राशोषर्थक प्रथम पुरुष के बहुवचन के अकर्मक परस्मैपदीय क्रियापद के रूप है । इन ममा रूषों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से एक ही रूप हमन्तु मोना है । इममें मूत्र संख्या ४.३६ से प्राकृत हलन्त धातु 'हम' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३.७६ मे प्राकृत में प्राप्तांग 'हस' में उक्त तीनों प्रकार के लकारों के अर्थ में प्रथम पुरुष के बहुवचन के मद्भाव में प्राकृत में 'न्तु' प्रत्यय की प्रामि होकर इसन्तु रूप मिद्ध हो जाता है।
हसत. हसत और हस्यास्त संस्कृत के का शः श्रासार्थक. विधि अर्थक, और श्राशीपर्थक के द्वितीय पुरुष के बहुवचन के अकर्मक परम्मैपदी क्रियापद के रूप है । इन सभी रूपों के स्थान पर पाकृत में समान रूप से एक ही रूप 'सह होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३६ से हलन्त प्राकृत-धातु 'हस' में विकरण अन्य 'अ' की प्राप्ति और ३-०६ से प्राकृत में प्रातांग 'हप्स' में उक्त तीनों प्रकार के लकारों के अथ में द्वितीय पुरुष के बहुवचन के मदभाव में प्राकृत में केरल एक ही प्रत्यय 'ह' की प्राप्ति होकर 'हरू ह' रूप मिल ही जाता है।
हसाम, हसेम और हस्यास्म संस्कृत के मशः उपरोक्त तीनों प्रकार के लकारों के तृतीय - पुरुष के बहुवचन के अकर्मक परस्मैपदी क्रियापद के रूप हैं । इन सभी रूपों के स्थान पर माकृत में समान रूप में एक ही रूप हसामो होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४-२३६ से हलन्त प्राकृत-धातु 'हस' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३.१४४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'श्रा' की प्राप्ति और ३.१७६ से