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वियोदय हिन्दी सामा सहित * 100000000006roinss0000000000+soteoroostercono00000000000000000004
क्रियातिपत्तेः स्थाने जज ना वा देशौ भवतः ॥ होजन । होज्जा ॥ अभविष्यदित्यर्थः । जाइ होज्ज वण्णणिज्जो ।।
अर्थ:-हेतु-हेतुलभाव' के अर्थ में कियानिपनि-लकार का प्रयोग हुआ करता है । इसको संस्कृत में 'लुङ् लकार कहते हैं । जब किसी होने वाली क्रिया का किसी दूसरी किया के नहीं होने पर नही होना पाया जाय; तब इस क्रियातिपत्ति अर्थक लक लकार का प्रयोग किया जाता है। जैसे:सुवृष्टिः अभविष्यत तदा सुभितम् अभविष्यत् = यदि अच्छो वृष्टि हुई होती तो सुभिन्न अर्थात अन्न आदि की उत्पत्ति भी अच्छी हुई होती। इस उदाहरण से प्रतीत होता है कि सुभिक्ष का होना अथवा नहीं होना पुष्टि के होने पर अथवा नही होने पर निर्भर करता है; यो वृष्टि' कारण रूप होती हुई 'सुभिक्ष' फल रूम होता है; इसीलिये यह लकार हेतु-हेतुमत्' भाव रूप कहा जाता है । इभीका अपर-नाम क्रियातिपत्ति भी है । यही संस्कृत का लख लकार है; जो कि अंग्रेजी में--( Conditional mood ) फहलाता है। क्रियातिपत्ति की रचना में यह विशेषता होती है कि 'कारण एवं कार्य' कप से अवस्थित तथा ऐसा होता तो ऐसा हो जाता' यो शर्त रूप से रहे हुए दो वाक्यों का एक संयुक्त वाक्य बन जाता है। इसमें प्रदर्शित की जाने वाली दोनों क्रियाओं का किसी भी प्रतिकूल सामग्री से 'प्रभाव जैसी स्थिति का रूप दिखलाई पड़ता है । इस लकार को हिन्दी में 'हेतु-हेतुमद् भूतकाल' कहते हैं तथा गुजरातोभाषा में यह संकेत भूतकाल' नाम से भी बोला जाता है। उदाहरण इस प्रकार हैं:-जइ मेहो होज, तया नणं होना = यदि जल वर्षा हुई होतो तो घास हुआ होता । इस उदाहरण से विदित होता है कि पूर्व वाक्यांश कारण रूप है और उत्तर वाक्यांश कार्य रूप अथवा फल रूप है। यों हेतु-हेमतभाव { Cause and effect) के अर्थ में क्रियातिपत्ति का प्रयोग होता है।
प्राकृत-भाषा में धातुओं के भाप्तांगों में ज अथवा जा' प्रत्ययों की संयोजना कर देने से जन धातुओं का रूप क्रियातिपत्ति नामक लकार के अर्थ में तैयार हो जाता है। यों संस्कृत भाषा में कियातिपास के अर्थ में प्रामव्य प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृन में केवल ज्ज अथवा उजा' प्रत्ययों की प्रादेश-प्राप्ति होती है । जैसे-- अभविष्यत, अविध्यन् , 'अविष्यः, अभविश्यत, अभविष्यम् और अभविष्याम =होज्ज तथा होना = वह हुश्रा होना, वे हुए होते तू हुआ होता, तुम हुए होते, मैं हुआ होता और हम हुए होते । दूमरा उदाहरण इस प्रकार है:-यदि अभविष्यत् वर्णनीयः = जई होज्ज घएणणिज्जो यदि वर्णन योग्य हुअा होता . ( वाक्य अधूरा है ); इस प्रकार से कारण कार्यात्मक क्रियातिपत्ति का स्वरूप समझ लेना चाहिये ! कोई कोई आचार्य कहते हैं कि इसका प्रयोग भूतकाल के समान हो भविष्यंतकाल के अर्थ में भी हो सकता है।
अविष्यत् , अयिष्यन , अभविष्यः, अभविष्यत, अभविष्यम् और अभविष्याम संस्कृत के कियातिपत्तिबोधक लुछ लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन के तथा बहुवचन के क्रमशः अकर्मक परस्मैपदी क्रियापद के रूप हैं। इन सभी रूपों का प्राकृत रूपान्तर समान रूप से होज एवम् होज्जा' होता