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* प्राकृत व्याकरण *
पवम रूप होड़ की सिद्धि सूत्र-संख्या १.९ में की गई है।
भवसि संस्कृत के वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के एकवचन का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत-रूपांतर होज्जसि, होज्जासि, होज्ज्ञ, होजा और होसि होते हैं । इनमें से प्रथम और द्वितीय रूपों में उपरोक्त रीति से प्राप्तांग 'हो' में सूत्र-संख्या ३.१७८ से 'उज तथा जा' प्रत्ययों की (विकरणरूप से) वैकल्पिक प्राप्ति और ३-१४० से प्राप्तांग होम्ज तथा होजा' में वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के एकवचन क अथ में सस्कृताय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के समान ही प्राकृत में भी सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होज्जास रूप सिम हो जाता है।
तृतीय और चतुर्थ रूपों में उपरोक्त रीति से प्राप्तांग 'हों में सुत्र संख्या ३-१७८ से तथा ३-१७७ से वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'वन और ज्जा' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर तृतीय तथा चतुर्थ रूप 'होज्ज और होज्जा' भो सिद्ध हो जाते हैं।
पंचम रूप 'होसि' की सिद्धि सूत्र-संख्या -१४५ में की गई है।
भविमति संस्कृ यो सदिचतु- मय पुरस के पकवचम का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूपान्तर होजहिंइ, होजाहिद, होज, होज्जा और होहि होते हैं । इनमें से प्रथम और द्वितीय रूपों में उपरोक्त रीति से प्रामांग 'हो' में सूत्र-संख्या ३-१७८ से ज्ज अथवा जा' प्रत्ययों की (विकरण रूप से)कत्यिक प्राप्तिः ३-१६ से प्राप्तांग होज तथा होज्जा' में भविष्यात कालवाचक अर्थ में प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' की प्राप्ति और ३-१३६ से भविष्यत काल के अर्थ में प्राकृत में कम से प्राप्तांग होहिं तथा होनाहि' में प्रथम पुरुष के एक्वषन के अर्थ में 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होजहिइ और होजाहिक्ष रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
तृतीय और चतुर्थ रूप होज्ज तथा होज्जा' में सूत्र संख्या ३-१७८ से तया ३-१४७ से प्राप्तांग 'हो' में भविष्यत-काल-बाचक माप्तख्य प्राकृतीय-प्रत्ययों के स्थान पर कम से 'इज तथा जा' प्रत्ययों की
कल्पिक रूप से भविष्यात काल-वाचक-अथ में प्रादेश-प्राप्ति होकर 'होज तथा होज्जा' रूप भी सिद्ध हो जाते हैं।
पंचम रूप 'होहिई की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है।
भविष्यास संस्कृत के भविष्यत-काल के द्वितीय पुरुष के एकवचन का अकर्मक क्रियाक का रूप है। इसका प्राकृत-रूपांतर होजहिसि, होजाहिसि, होञ्ज, होगा और होहिसि होते हैं। इनमें से प्रथम
और द्वितीय रूपों में उपरोक रीति से प्राप्तांग 'हो' में सूत्र संख्या ३-१७८ से 'इज तथा जा' प्रत्ययों को (विकरण रूप से)कल्पिक-प्राप्ति ३-१६६ से प्रातांग 'होम तथा होजा' में मषिष्यत कालवाचक