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प्राकृत व्याकरण
[ ३२६ ] 406+++breastorboro00000000000000000000000000000 होनाहिसि । होज्ज | होज्जा । होहिसि । होजहिमि । होजाहिमि । होज्जस्मामि । होज्जहामि । होज्जर्स । होज्ज । होज्जा । इत्यादि । विध्यादिषु । होजउ । हाज्जाउ । होज्ज । होज्जा । भवतु भवेद्वेत्यर्थः । पञ्। होउ ।। स्वरान्तादितिकिम् । हसेज्ज । हसेज्जा । तुवरेज्ज तुवरेज्जा ।।
____ अर्थः-प्राकृत-भाषा में जो स्वरान्त धातुई हैं, उन स्वरान्त धातुओं के मूल अंग और संयोजित किये जानेवाले वर्तमान काल के, भविस्यन काल में सार्थक पौर विधि-अर्थक के प्रत्यय इन दोनों के मध्य में वैकल्पिक रूप से उन अथवा ना का प्राप्ति (विकरण प्रत्यय जैसे रूप से ) हुश्रा करती है। कभी-कभी एसा भी होता है कि वर्तमानकाल कं, भविष्यत काल के, श्राज्ञार्थक और विधि अर्थक के बोधक प्राप्तव्य प्रत्ययों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ज अथवा जा' की श्रादेश-प्राप्ति भी हुआ करती है। निष्कर्ष रूप से वक्तव्य यह है कि बगन्त धातु और उक्त लकारों के अर्थ में प्राप्तध्य प्रत्ययों के मध्य में जज अथवा जा' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है । तथा कमी कसी क लकारों के अर्थ में प्राप्तव्य सभी प्रकार के पुरुष बाधक तथा सभी प्रकार के घचन बोधक प्रत्ययों के स्थान पर भी वैकल्पिक रूप से 'ज्ज अथवा जा' प्रत्यय की प्राप्ति हुआ करती है। उक्त लकारों से सम्बन्धित उदाहरण कम से इस प्रकार हैं; सर्व-प्रथम वर्तमानकाल के उदाहरण दिये जा रहे हैं:- भवति होज्जइ, होज्जा होज तथा होज्जाः कल्पिक-पक्ष होने से पक्षान्तर में हाइ' भी होता है । भतिज्जसि, होज्जासि; होज्ज तथा होना; वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'होस' भी होता है। उपरोक्त दोनों उदाहरण क्रम से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के तथा द्वितीय पुरुष के एकवचन के हैं। अत्र भविष्यकाल के उदा. हरण प्रदर्शित किये जा रहे हैं। भविष्यति होज्जाहा, होज्जाहिद, होज्ज तथा मज्जा । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने के कारण से. पक्षान्तर में 'होहिई रूप भी होता है । इनका हिन्दी अर्थ होता है वह होगा अथवा वह होगी। दूसरा उदाहरण भविष्यप्ति हो जहिसि, होज्जाहिसि, होज्ज तथा होज्जा । धैकल्पिक पक्ष होने से पक्षाम्सर में होशिस रूप का भी सदभाव होगा । इनका हिन्दी अर्थ होता है-तू होगा अथवा तू होगी तीसरा उदाहरण:-विष्यामि हो जहिमि, होनाहिमि; होज्जम्मागि, होनहामि, सेक्सस्स, होज तम्रा हाजा, पक्षान्तर में हाहि मि मी होता है । इनका हिन्दी-धर्म यह है कि-मैं होऊँगा अथवा मैं होमी।
आज्ञार्थक और विधि-अर्थक के उदाहरण इस प्रकार हैं:-भवतु और भवेत् - होजउ, होनाज होउन तथा होजा; पक्षान्तर में होउ' भी होता है । इनका यह अर्थ है कि वह हो अथवा बह होथे । इन उदाहरणों से यह विदित होता है कि बैकल्पिक रूप से स्परान्त धातु और प्रत्यय के मध्य में 'इज अथवा उजा' की प्राप्ति हुई है तथा पज्ञास्तर में प्रत्ययों के स्थान पर ही 'उज अयवा जा' का भावेश हो गया है। साथ में यह भी बतला दिया गया है कि उपरोक्त दोनों विधि-विधान वैकक्षिक स्थिति वाले होने से सृतीय-श्रवस्था में में अथवा ना' का धातु और प्रत्यय के मध्य में श्रागम