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* प्राकृत व्याकरण
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भव अथवा भवतात, भषे और भूयाः संस्कृत के क्रमशः आज्ञार्थक, विधि अर्थक, और प्राशीषर्थक के द्वितीय पुरुष के पकवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप है। इन मभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से एक ही रूम क्षेसु होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत-धातु 'भू = भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप की आदेश-प्रानि और ३-१७६ से प्राकृत में श्रादेश-प्राम धातु-अङ्ग 'हो' में उक्त तीनों लकारों के अर्थ में द्वितीय- पुरुष के एकवचन के सद्भाव में 'सु' प्रत्यय को प्राप्त होकर प्राकृत-क्रियापद का रूप होसु सिद्ध हो जाता है।
तिष्ठ अथवा तिष्ठत्तात् तिष्टेः और तिष्ठयाः संस्कृत के क्रमशः प्राज्ञार्थक, विधि-अर्थक और माशीषर्थक द्वितीय पुरुष के एकवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इन मभी रूपों के स्थान पर प्राकृत म समान रूप से एक ही रूप ठाहि होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-१ . से मूल संस्कृत-धातु 'स्था = तिष्ठ' के स्थान पर प्राकृत में 'ठा' रूप की श्रादेश-प्राति और ३.१७४ से प्राकृत में आदेश-प्रान धातु अन्न 'ठा' म उक्त नानों लकारों के अर्थ में द्वितीय-पुरुष के एकवचन के सद्भाव में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'ठाहि' रूप सिद्ध हो जाता है । ६-१७५।।
बहुषु न्तु ह मो ॥ ३ -१७६ ॥ विक्ष्यादिपूत्पन्नानां बहुष्यर्थेषु वर्तमानानां त्रयाणां त्रिकाणां स्थाने यथासंख्यं न्तु ह मो इत्येते आदेशा गवन्ति ॥ न्तु । हसन्तु । हसन्तु हसेयुर्वा ॥ ह । हसह । हसत । हसेत वा ॥ मो । हसामो । हसाम । इसेम वा ॥ एवं तुरन्तु । तुवरह । तुवरामी ।।
अर्थ:-संस्कृत में प्राप्त श्राज्ञार्थक, विधि अर्थक और श्राशीपर्थक के प्रथम-द्वितीय और तृतीय पुरुष के द्विवचन में तथा बहुवचन में जो प्रत्यय धातुओं में नियमानुसार संयोजित किये जाते हैं; उन प्राप्तव्य प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में जिन-भादेश प्रान प्रत्ययों की उपलब्धि है; उनका विधान इस सूत्र में किया गया है। तदनुसार प्रात-धातुची मे उक्त लकारों के अथ में प्रथम-पुरुष के बहुवचन में 'न्तु' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होती है। द्वितीय पुरुप के बहुवचन में 'इ' प्रत्यय का सद्भाव होता है और तृतीय पुरुष के बहुवधान में 'मो' प्रत्यय का आदेश-भाव जानना चाहिये । यों हीनों लकार के द्विवचन के तथा बहुवचन के प्रत्ययों के स्थान पर केवल एक एक प्रत्यय की ही क्रम से 'न्तु, ह और मो' को प्रथम पुरुष में द्वितीय पुरुष में और तृतीय पुरुष में प्रादेश-प्राति जाननी चाहिये । इनके क्रम से उदाहरण इस प्रकार हैं: -
'न्तु' प्रत्यय का सदाहरणः-हसन् हसेयुः और हस्यासुः = इसन्तु-वे हँसे; वे हँसते हें अथवा पे हँसने योग्य हो । द्वितीय पुरुष के बहुवचनार्थ-प्रत्यय 'ह' का उदाहरण:-हसत; हसेत और हस्यास्त हसह-माप मो; भाप इसे और भाप हँसने योग्य हो । तृतीय पुरुष के बहुवचनार्थक प्रत्यय 'मो' का