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* वियोदय हिन्दी प्रारूप सहित *
स्थान पर प्राकृत में कम से 'ज्ज्ञ और ज्जा' प्रत्ययों की प्राप्ति शेकर कम इसेज्जा सिद्ध हो जाते हैं।
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दोनों रूप हसेज और
पठति, पठन्ति पठारी, पठथ, पठमि और पठान: संस्कृत के वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों के कमशः एकवचन के और बहुवचन के सकर्मक क्रिया के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप समुच्चय रूप से पढेज्ज और पढेज्जा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २.१६६ से मूल संस्कृत धातु 'पठ' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'टू' के स्थान पर 'द' की प्राप्तिः ४ २२६ से प्राप्त हलन्त 'कृत धातु 'पढ' में बिकरण प्रत्यय 'थ' की प्राप्ति ३. ९५६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-१७७ से प्राप्तांग 'पढे' में वर्त मानकाल वाचक सभी प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में केवल ' और जा' प्रत्ययों की क्रमशः प्राप्ति होकर 'पढेज और पढेजा' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
शृणीति, शृण्वन्ति, श्रोष भृथ शृणोमि और धमः संस्कृत के वर्तमानकाल के लीनों पुरुषों के क्रमश: एकवचन के तथा बहुवचन के सकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप समान रूप से और समुच्चय रूप से सुरोज्ज तथा सुज्जा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-३६ से संस्कृत में प्रत त्रिकरण प्रत्यय सहित पञ्चमीय धातु श्रंग 'श्रुनु' में स्थित '' के 'र' व्यञ्जनका लोपः १-२६० से लाप हुए र व्यञ्जन के पश्चात शेष रहे हुए शु' में स्थित तालव्य 'श' के स्थान पर प्राकृत में दन्त्य 'स' को की प्राप्ति; १-२२६ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिः ४-०३८ से प्राप्त सु ́ में स्थित अन्त्य स्वर 'उ' के स्थान पर '' की प्राप्ति २-१४६ से प्राकृत में प्राप्तांग 'सुण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-९०७ से प्राप्तांग 'भुणे' में वर्तमान-कालिक समी पुरुषों के सभी बच्चनों के अर्थ में प्राप्तव्य संस्कृतिीय सभी प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में केवल से प्रत्यय ही 'ज्ज तथा ज्जा' को क्रम से प्राप्ति होकर सुख और सुणेच्या रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
'हम' क्रियापद की मिद्धि सूत्र संख्या ३-१३९ में की गई है।
'पढ' यापद रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१९९ में का गई है।
शृणोति संस्कृत के वर्तनानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन का सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप सुणइ होता है। इसमें 'ग' 'यंग की प्राप्ति इसी सूत्र में वर्णित उपरोक्त रीति अनु द्वार; तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१३३ से प्राप्तांग सु' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन के अर्थ में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्ययति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत क्रियापद का रूप सुमह सिद्ध हो जाता है।
पठिष्यति पठिष्यन्ति पठिष्यास, पठिष्यथ, पठिष्यामि और पठिष्यामः संस्कृत के भवि यत काल के तीनों पुरुषों के मशः एकवचन के तथा बहुवचन के सकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इसके में प्राकृत रूप समान रूप से पढे तथा पन्जा होते हैं। इनमें प्रारूप 'पढें' की प्राप्ति इसी सूत्र
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