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प्राकृत व्याकरण
[ ३१७ ] .000+++++++0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पुरुष के एकवचन का दृष्टान्त:-.त्यम) पश्य अथवा (त्वम् ) पश्यतात; (स्वम् ) पश्ये:: (स्वम् ) दृश्याः = (तुम) पेच्छसु-तू देख; तू देखे अथवा तू दर्शनीय वन (अथवा तू दर्शनीय हो ; तृतीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः -(अहम , पत्यानि; (अहम्) पश्येयम; (अहम) दृश्यासम् (हम) पेच्छामु-मैं देखू अथवा देखने योग्य बनें।
लोट् लका का योग मुख्यत: 'आशा, निमंत्रण का उपदेश और पाशीर्वाद प्रादि प्रों में होता है। जबकि लिङ लकार का उपयोग 'सम्भव, श्राज्ञा. निवेदन, प्रार्थना, इच्छा. श्राशीर्वाव, श्राशा तथा शक्ति' आदि अर्थों में हुया करता है।
प्रथम पुरुष के एकवचन के अर्थ में प्राप्तध्य प्रत्यय 'उ' है; परन्तु सूत्र में 'उ' नहीं लिखकर 'दु' का उल्लेख करने का तात्पर्य केवल उच्चारण की सुविधा के लिये है । जैसा कि यही 'अर्थ' सूत्र की वृत्ति में प्रदत्त भाषान्तराणम्' पद से अभिव्यक्त किया गया है।
हसत, हसेन और हस्याच संस्कृत के क्रमशः श्राज्ञार्थक, विधि-अर्थक और आशीषर्थक के प्रथम पुरुष के एकवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इन सभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से एक ही रूप इस होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३६ से हलन्त प्राकृत धातु 'हस में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३.१७३ से मूल प्राकृत धातु हस' में उक्त तीनों लकारों के अर्थ में प्रथम पुरुष के एकवचन के सदूभाव में प्राकृत में 'उ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसउ रूप सिद्ध हो जाता है।
'सा' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-३ में की गई है।
हस अथवा हसतातू, हसे और हस्याः संस्कृत के क्रमशः प्राज्ञार्थ क, विधि-अर्थक और प्राषिथ क के द्वितीय पुरुष के एकवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इन सभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से एक रूप हससु होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३६ से हलन्त प्राकृत धातु 'हम' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३.१७३ से प्राकृत में प्राप्तांग 'हप्त' में उक्त तीनों लकारों के अर्थ में द्वितीय पुरुष के एकवचन के सदभावः में प्राकृत में 'मु' प्रत्यय का पप्ति कर हसमु रूप सिद्ध हो जाता हे।
'तुम' सर्वनाम को मिति सूत्र-संख्या ३-९० में की गई है।
हसानि, हसेयम् और हस्यासम् संस्कृत के क्रमशः आज्ञार्थक, विधि-अथक और श्राशीष. यक के तृतीय-पुरुष के एकवचन के अकर्मक क्रियापन के रूप हैं। इन सभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से एक ही रूप इसामु होता है। इसमें पत्र संख्या ४.२३६ से हलन्त प्राकृत-धातु 'हस' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५५ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'श्रा' की प्राप्ति और ३-१४३ से प्राकृत में प्राप्तांग 'हसा' में उक्त टीनों लकारों के अर्थ में तृतीय पुरुष के एकवचन के सद्भाव में प्राकृत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सामु रूप सिद्ध हो जाता है।