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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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मूर्श संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप-मुद्धाणो और मुद्धा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सत्र संख्या १.८४ से मूल संस्कृत शब्द 'मूर्धन' में स्थित दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर हस्य स्वर 'उ' को प्राप्ति; २-७ से 'र' का लोप: २-८से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए ध' को द्विस्व धधु' की प्राप्ति; २.६० से प्राप्त पूर्व 'ध' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति उपरोक्त; ३-५६ से अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'प्राण' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्राप्तांग अकारान्त रूप 'मुद्धाण' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्त व्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो - ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्रथम रूप मुखाणो सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप 'मुद्धा' की सिद्धि सूत्र संख्या २-४१ में की गई है। 'साणी' और 'सा' रूपों को सिद्धि सूत्र-संख्या १-५२ में की गई है।
सुकर्मणः संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप सुकम्माणे होता है । इममें सूत्र संख्या २-७१ से मूल संस्कृत शम्न 'सुकर्मन्' में स्थित 'र' का लोप; -से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति; ३-५६ से अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'प्राण' आदेश की प्राप्ति; ३-१४ से प्राप्तांग अकारान्त रूप 'सुझम्माण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'श्रागे द्वितीया बहुवचन बोध रु.प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के पहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'शस' का प्राकृत में लोप होकर प्राकृतीय द्वितीयान्त बहुवचन का रूप सुकम्माणे सिद्ध हो जाता है।
'पेच्छ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-73 में की गई है।
पश्यति संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है । इसको (आदेश-प्राप्त) प्राकृत रूप निएइ होता है। इसमें मत्र-संख्या ४-१८१ से संस्कृतीय मूल धातु 'शू-पश्य' के स्थान पर प्राकृत में 'निन' रूप की.श्रादेश-प्राप्ति; ३-१५० से प्राप्त प्राकतीय धातु 'निश्र' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'श्रागे वर्तमान काल प्रथम पुरूष के एकवचनीय प्रत्यय का सदभात्र होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३.१३६ से 'ति' के स्थान पर प्राकृत में इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निएइ रूप सिद्ध हो जाता है।
'कह' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई है। 'सो' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-९७ में की गई है। 'सुकम्माणे' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में-(३.4% में) ऊपर की गई है । 'सम्म रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या-१-३२ में की गई है । ३-५६ ।।