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* प्रियोदय हिन्ही व्याख्या सहित #
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स्त्रियां तु टा-ङस् ङ े: (३-२६ ) इत्याद्युक्तम् | जस्- शस् ङसि त्ता-दो- द्वामि दीर्घः (६-१२) इत्येतत कार्यातिदेशः । गिरी गुरू चिह्नन्ति | गिरीश्री गुरूओ आगयो । गिरीण गुरूण धणं ॥ *यसि वा (३-१३) इत्येतत् कार्यातिदेशो न प्रवर्तते । इदुत दीर्घः (३-१६) इति नित्यं विधानात || दाण-शस्त (३-१४) । निम्म्यस सुनि (३-१५) इत्येतत् कार्यातिदेशस्तु निषेत्स्यते ( ३- २६ ) ॥
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अर्थः- इस सूत्र में अकारान्त शब्दों के अतिरिक्त श्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि बड- लिंग वाले शब्दों के लिये विभक्ति-बीचक प्रत्ययों से संबंधित ऐप का उल्लेख किया गया है, जो कि पहले नहीं कही गई है। तदनुसार सर्व प्रथम इस सर्व सामान्य विधि की रोषणा की गई है. किं 'जिन आकारान्त आदि शब्दों के लिये पहले जो प्रत्यय विधि नहीं बतलाई गई है; उसको 'अकारान्त शब्द के लिये कही गई प्रत्यय-विधि' के समान हो इन आकारान्त श्रादि शब्दों के लिये भी समझ लेना चाहिये । इस व्यापक श्री घोषणा के अनुमानविक्तिबोधक प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत भाषा में व्यकाशन्त शब्दों में जुड़ने वाले प्रत्ययों की कार्य-विधि और प्रभावशीलता इन आकारान्त आदि शब्दों के लिये भी जान लेना चाहिये इस व्यापक विवि-सूचना को यहां पर कार्याति 'देश' शब्द से उल्लिखत की गई है। सर्वप्रथम सूत्र संख्या ३-४ जन् म लुक का कार्यातिदेशना का उदाहरण देते हैं::- प्रथमा विभक्ति के बहुवचन के उदाहरणः - माला, गिरयः गुरवः सख्यः षधव राजन्ते = माला, गिरी, गुरु, सही, हू, हम्तिमात्तायें, पहाड़, गुरूजन, मखियां और बहुएं सुशोभित हो रही हैं। इसी प्रकार से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के उदाहरण यो है..
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माला गिरीन, गुरून् मब्रोः वधूः पंज्ञ = माला, गुरू, सही, बहू ऐकताओं को, पहाड़ी की, गुरुजनों को, मखियों की और बहुप को देखो। इन प्रथम और द्वितीयामिति के बहुवचन 市 उदाहरणों में कागन्त, इकारान्त ईकारान्त और ऊकारान्त पुल्लिंग एवं सीलिंग के शब्दों में अकारान्त शब्द क' प्रत्यय-चिकायां होती है; ज्ञान कराया गया है।
'अमोस्य' ( २-१ ) सूत्र की काय अतिदेशना उदाहरण इस प्रकार हैं: गिरिम्, गुरुम् सखीम् ; वधूम, ग्रामण्यम् खलध्वम् प्रेक्ष, गुरू, सहि बहु, गामगिं खल पंछाड़ को गुरू की, सखी की, वधु को ग्राम- मुखिया का और खलिहान नाफ करने वाले को देखो। इन शहरों में भी अकारान्त शब्द के समान ही द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय की कार्य शीलता प्रदर्शित की गई है ।
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'दा-यामांण ( ३-३) सूत्र की कार्य-प्रतिदेशना का स्वरूपदर्श उदाहरण इस प्रकार है:हाहा-वृत्तम=हाहाण कथं=गन्धर्व से, अथवा देव से किया गया है। यह तृतीया विभक्ति के एकवचन का 'उदाहरण हुआ; ष्टो विभक्ति के बहुवचन से होने वाले कार्यातिदेश के उदाहरण निम्न प्रकार से हैं। -
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