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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * wwwwwwcorrentiatimorroorkeerna.orosroroscorrearransorrorsr000000002
गता संस्कृत का जिग विशेष का रूप है । इसका प्राकृत रूप गय है। इसमें सूत्र संख्या १.११ से पान्त विसर्ग रूप व्यञ्जन का लोग; १.१७७ से 'त' व्यजन का लोप, १.१८० से लोप हुए त' घ्यजन के पश्चान शेष रहे हुए 'श्रा' स्वर के स्थान पर 'या' को प्राप्ति और १-८४ से प्राप्त वर्ण 'या' में स्थित दीर्घ स्वर 'पा' के स्थान पर भागे संयुक्त व्यन्जन 'हो' का सद्भाव होने से हव स्वर 'म' की प्राप्ति होकर 'गय' रूप की सिद्धि हो जाती है।
स्मः संस्कृत का वर्तमान काल का तृतीय पुरुष का बहुवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापर का रूप है । इसका प्राकृत रूप 'म्हों दिया गया है । इम में सूत्र-संख्या ३-१४४ से वर्तमान काल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में 'अस' धातु में प्राकृतीय प्रत्यय 'मो' की प्राप्ति और ३-१४७ से प्राप्त रूप 'अम+ मो' के स्थान पर 'हो' रूप की सिद्धि हो जाती है।
'गय' (विशेषणात्मक ) रूप को भिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई हैं।
स्मा संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का बहुवचनान्त परस्मैपदाय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मह' होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-१४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में 'अस' धातु में प्राकृतीय प्रत्यय 'न' का प्राप्ति और ३-१४७ से पाप्त रू.५ 'अस + में' के स्थान पर है रूप की सिद्धि हो जाती है।
अस्मि संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकमक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अस्थि' भी होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३.१४१ से वर्तमान काल के तृतीय पुरुप के एकवचन में 'प्रस' धातु में प्राकृतीय प्रत्यय 'मि' की प्राप्ति और ३-१४८ से प्राप्त रूप 'अस + मि' के स्थान पर 'अस्थि' रूप की सिद्धि हो जाता है।
'अहं' (मनाम) रूप की सिद्धि मूत्र संख्या ३-१0५ में की गई है।
स्नः संस्कृत का वर्तमान काल का तृतीय पुरुष का बहुवचनान्त परस्मैपर्दय अकर्मक क्रियापई का रूप है। इसका प्राकृत रूप अस्थि' मो होता है । इसमें पुत्र-संख्या ३-६४४ मे वर्तमानकाले' के तृतीय पुरुष के बहुवचन में 'यस' धातु में प्राकृतीय प्रत्यय 'मो-मु-भ' को प्राप्ति और ३.१४८ से प्राप्त कर 'अस + मो-मु-म' के स्थान पर 'अस्यि रूप की सिद्धि हो जाती है।
'अम्हे' (सर्वनाम) रूप की सिउ सूत्र-संख्या ३-१० में की गई है। 'स्मः अस्थि' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। अम्ही' (सर्वनाम) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१०६ में की गई है।
'घच्छण' (प्राकृत पर) को सिद्ध सूध-संखश 1.5 में की गई है।